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सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तिः (मल०) ॥७७॥
त्यादि प्रत्यालापकं च पूर्वोक्तानि पदानि योजनीयानि, तत एवं सूत्रपाठः-'एगे पुण एवमाहंसु ता मणोरमंसि णं पवयंसिर सूरियलेसा पडिहया आहियत्ति वइज्जा एगे एवमासु ३, एगे पुण एवमाहंसु, ता सुदंसणंसि णं पवयंसि सूरियलेसालेश्याप्रतिपडिहया आहियत्ति वएजा, एगे एवमासु ४, एगे पुण एवमाहंसु, ता सयंपहसि णं पबयंसि सूरियलेसा पडिहया हतिः सू२६ आहियत्ति वइज्जा एगे एवमाहंसु ५, एगे पुण एवमाहंसु ता गिरिरायसि णं पवयंसि सूरियलेसा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु ६, एगे पुण एवमाहंसु ता रयणुच्चयंसि णं पवयंसि सूरियलेसा पडिहया आहियत्ति वइजा, एगे एवमाहंसु ७, एगे पुण एवमाहंसु ता सिलुच्चयंसि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएजा, एगे एवमा हंसु ८, एगे पुण एवमाहंसु ला लोयमझसि णं पबयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएजा, एगे एवमाहंसु ९, एगे पुण एवमाहंसु ता लोगनाभिंसि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वइज्जा एगे एवमाहंसु १०, एगे पुण एवमाहंसु ता अच्छंसि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वइजा एगे एवमाहंसु ११, एगे पुण एवमाहंसु ता सूरियावत्तसि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएजा एगे एवमाहंसु १२, एगे पुण
एवमाहंसु ता सूरियावरणंसि पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएजा, एगे एवमाहंसु १३, एगे पुण एवलामाइंसु ता उत्तमंसि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु १४, एगे पुण एवमाहंसु
ता दिसादिस्सि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएजा, एगे एवमाहंसु १५, एगे पुण एवमाहंसु ता अवतंसंसि णं पवयंसि सूरियस्स लेसा पडिहया आहियत्ति वएजा एगे एवमाहंसु १६, एगे पुण एवमाहंसु ता धरणि-15
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