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________________ प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती. २२क्रियापदे क्रिया | संवेधःसू. २८२ ॥४४४॥ eeeeeeeee कति णं भंते ! आतोजितातो किरियाओ पण्णत्तातो ?, गो० ! पंच आओजियाओ किरियाओ पण्णत्ताओ, तं०-काइया जाव पाणातिवातकिरिया, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया आतोजिया किरिया अस्थि तस्स अधिगरणिया किरिया आतोजिता अस्थि जस्स अधिगरणिया आतोजिता किरिया अस्थि तस्स काइया आतोजिया किरिया अस्थि ?, एवं एतेणं अभिलावेणं ते चेव चत्तारि दंडगा भाणितत्वा, जरस समयं देसं जं जाव वेमाणियाणं । जीवे णं भंते ! समयं काइयाए अधिगरणियाए पादोसियाते किरियाए पुढे तंसमयं पारियावणियाते पुढे पाणातिवातकिरियाते पुढे ?, गो०! अत्थेगतिते जीवे एगतियाओ जीवाओ जंसमयं काइयाए अधिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुढे पाणाइवायकिरियाए पुढे १ अत्थेगतिते जीवे एगतियाओ जीवाओं समयं काइयाए अधिगरणियाए पादोसियाते किरियाए पुढे तं समयं पारितावणियाए किरियाए पुढे पाणाइवायकिरि8 याए अपुढे २ अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जंसमयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए पुढे तंसमयं पारि० किरि० अपुढे पाणाइवायकि० अपुढे ३ (सूत्र २८२) 'कइणं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ' इत्यादि प्राग्वत्, एता एव क्रियाः चतुर्विंशतिदण्डकक्रमेण चिन्तयति-'नेरइया णं भंते !' इत्यादि पाठसिद्धं, सम्प्रत्यासामेव क्रियाणामेकजीवाश्रयेण परस्परमविनाभावित्वं चिन्त- यति-'जस्स णं भंते !' इत्यादि, इह कायिकी क्रिया औदारिकादिक्रियाश्रिता प्राणातिपातनिवर्तनसमर्था प्रति-विशिष्टा परिगृह्यते न या काचन कार्मणकायाश्रिता वा, तत आद्यानां तिसृणां क्रियाणां परस्परं नियम्यनिया रडरररर ४४४॥ dain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600241
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 02
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size9 MB
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