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________________ चेव णं तेउलेसे उववइ, एवं आउकाइया वणस्सइकाइयावि भाणियबा, से नूणं भंते ! कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे तेउ. काइए कण्हलेसेसु नीललेसेसु काउलेसेसु तेउकाइएसु उववजइ कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे उववह जल्लेसे उववजइ तल्लेसे उववट्टइ १, हंता गो०, कण्ह० नील. काउलेसे तेउकाइए कण्ह० नील. काउलेसेसु तेउकाइएमु उववजइ सिय कण्हलेसे उव्वदृइ सिय नीललेसे उववट्टति सिय काउलेसे उववइ सिय जल्लेसे उववजइ तल्लेसे उववट्टइ, एवं वाउकाइयबेइंदियतेइंदियचउरिदियावि भाणियत्वा । से नूर्ण भंते ! कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे पंचेंदियतिरिक्खजोणिया कण्हलेसेसु जाव सुक्कलेसेसु पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजइ, पुच्छा, हंता गोयमा, कण्हलेसे जाव सुक्कलेस्से पंचेंदियतिरिक्खजोणिए कण्हलेसेसु जाव सुक्कलेसेसु पंचेंदियतिरि० उववसिय कण्हलेसे उववइ जाव सिय सुक्कलेसे उववइ सिय जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उबवट्टइ । एवं मणूसेवि । वाणमंतरा जहा असुरकुमारा जोइसियवेमाणियावि एवं चेव, नवरं जस्स जल्लेसा, दोण्हवि चयणंति भाणियत्वं ( सूत्रं २२२) 'नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववज्जई' इत्यादि, अस्य चायमभिसम्बन्धः-द्वितीयोद्देशके नारकादीनां लेश्यापरिसङ्ख्यानं अल्पबहुत्वं महर्दिकत्वं चोक्तं, इह तु तेषामेव नारकादिजीवानां तास्ता लेश्याः किमुपपातक्षेत्रोपपन्नाना& मेव भवन्ति उत विग्रहेऽपि इत्यस्यार्थस्य प्रतिपादनार्थ प्राक् नयान्तरमाश्रित्य नारकादिव्यपदेशं पृच्छति 'नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववजइ अनेरइए नेरइएसु उववजई' इति, इदं च प्रश्नसूत्रं सुगम, भगवानाह-गौतम ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600240
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 01
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages752
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size14 MB
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