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________________ सन्नी णं भंते ! जीवे सन्नीभावेणं किं पढमे पुच्छा, गोयमा ! नो पढमे अपढमे, एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणिए, एवं पुहुत्तेणवि३। असन्नी एवं चेव एगत्तपुहुत्तेणं नवरं जाव वाणमंतरा, नोसन्नीनोअसन्नी जीवे मणुस्से सिद्धे पढमे नो अपढमे, एवं पुहुत्तेणवि४॥सलेसे णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहा आहारए एवं पुहुत्तेणवि कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा एवं चेव नवरं जस्स जा लेसा अस्थि । अलेसे णं जीवमणुस्ससिद्धे जहा नोसन्नीनोअसन्नी ५॥ सम्मदिट्टीए णं भंते ! जीवे सम्मदिहिभावेणं किं पढमे पुच्छा, गोयमा ! सिय पढमे सिय अपढमे, एवं एगिदियवज्जं जाव वेमाणिए, सिद्धे पढमे नो अपढमे, पुहुत्तिया जीवा पढमावि अपढमावि, एवं जाव वेमाणिया, सिद्धा पढमा नो अपढमा, मिच्छादिट्ठीए एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारगा, सम्मामिच्छादिट्ठी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी, नवरं जस्स अस्थि सम्मामिच्छत्तं ६॥ संजए जीवे मणुस्से य एगत्तपुहुत्तेण जहा सम्मदिट्ठी, असंजए जहा आहारए, संजयासंजए जीवे पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणुस्सा एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिही नोसंजएनोअस्संजएनोसंजयासंजए जीवे सिद्धे य एगत्तपुहुत्तेणं पढमे नो अपढमे ७॥ सकसायी कोहकसायी जावलोभकसायी एए एगत्तत्तुपुहुत्तेणं जहा आहारए, अकसा० | जीवे सिय पढमे सिय अपढमे, एवं मणुस्सेवि, सिद्धे पढमे नो अपढमे, पुहुत्तेणं जीवा मणुस्सावि पढमावि अपढमावि, सिद्धा पढमा नो अपढमा ८॥णाणी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी आभिणिबोहियनाणी जाव मणपजवनाणी एगत्तपुहुत्तेणं एवं चेव नवरं जस्स जं अत्थि, केवलनाणी जीवे मणुस्से सिद्ध य एग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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