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१२ शतके १ उद्देशः रत्नप्रभादिपूत्पादः
सू४७०
व्याख्या
18 लोभकसायी, सोइंदियउवउत्ता ण उबटुंति एवं जाव फासिदियोवउत्ता न उच्वटुंति, जहन्नेणं एको वा दो वा प्रज्ञप्तिः
तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा नोइंदियोवउत्ता उन्मुति मणजोगी न उव्वदंति एवं वइजोगीवि जहन्नेणं एको| अभयदेवी-
II वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा कायजोगी उबटुंति एवं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ॥ इमीसे णं| या वृत्तिः२४ भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु केवइया नेरइया
द पन्नत्ता ? केवइया काउलेस्सा जाव केवतिया अणागारोवउत्ता पन्नत्ता? केवतिया अणंतरोववन्नगा पन्नत्ता ११ ॥५९७॥
केवइया परंपरोववन्नगा पन्नत्ता २? केवइया अणंतरोगाढा पन्नत्ता ३? केवइया परंपरोगाढा प०४ ? केवइया अणंतराहारा पं०५ ? केवतिया परंपराहारा ६? केवतिया अणंतरपज्जत्ता प०७? केवतिया परंपरपजत्ता पन्नत्ता ८१ केवतिया चरिमा प०९ ? केवतिया अचरिमा पं० १०१, गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएम संखेजा नेरतिया प० संखेजा काउलेसा प० एवं जाव संखेजा सन्नी प०, असन्नी सिय अस्थि सिय नत्थि जइ अत्धि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा प०, संखेजा भवसिद्धी प० एवं जाव संखेजा परिग्गहसन्नोवउत्ता प० इथिवेदगा नत्थि पुरिसवेदगा नत्थि संखेजा नपुंसगवेदगा प०, एवं कोहकसायीवि मानकसाई जहा असन्नी एवं जाव लोभक० |संखेजा सोइंदियोवउत्ता प० एवं जाव फासिंदियोवउत्ता नोइंदियोवउत्ता जहा असन्नी संखेज्जा मणजोगी |प० एवं जाव अणागारोवउत्ता, अणंतरोववन्नगा सिय अस्थि सिय नत्थि जइ अत्थि जहा असन्नी, संखेजा
॥५९७॥
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