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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ १ ॥५१६॥ हत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ गंगा महानदीं ओगाहेति २ जलमजणं करेह २ जलकीडंकरेह २ जलाभिसेयं करेति २ आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवयपितिकयकज्जे दग्भसगन्भकल साहत्थगए गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ २ जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता दन्भेहि य कुसेहि व वालुयाएहि य वेतिं रएति वेतिं रएता सरएणं अरणिं महेति सर० २ अगिंग पाडेति २ अरिंग संधुकेह २ समिहाकट्ठाई पक्खिवह समिहाकट्ठाई पक्खिवित्ता अरिंग उज्जालेइ अरिंग उज्जालेत्ता - 'अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे । तं०-सकहं वक्कलं ठाणं, सिज्जा भंडं कमंडलुं ॥ १ ॥ दंडदारुं तहा पाणं अहे ताई समादद्दे ॥ महुणा य घएण य तंदुलेहि य अरिंग हुई, अरिंग हुणित्ता चरुं साहेइ, चरुं साहेत्ता बलि वहस्सदेवं करेह बलिं वहस्सदेवं करेत्ता अतिहिपूयं करेइ अतिहिपूयं करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति, तए णं से सिवे रायरिसी दोघं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरह, तए णं से सिवे रापरिसी दोचे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पचोरुहद्द आयावण० २ एवं जहा पढमपारणगं नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेति २ दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव आहारमाहारेह, तए णं से सिवरायरिसी तथं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरति, तए णं से सिवे रायरिसी सेसं तं चेव नवरं पञ्चच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चैव जाव आहारमाहारेह, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरह, तए णं से सिवे रायरिसी चत्थं छट्ठक्खमणं एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only ११. शतके ९ उद्देशः शिवराजर्षेस्तापसता ॥५१६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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