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| १ शतके | उद्देश: ३३ जमालिप्रतिबोधः सू ३८३
व्याख्या- जित्था-किन्नं अज खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा मुगुंदमहेइ वा णागमहेइ वा जक्खमप्रज्ञप्तिः
हेइ वा भूयमहेइ वा कूवमहेइ वा तडागमहेइ वा नईमहेइ वा दहमहेइ वा पचयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा चेइअभयदेवी
यमहेइ वा थूभमहेइ वा जणं एए बहवे उग्गा भोगा राइन्ना इक्खागा णाया कोरवा खत्तिया खत्तियपुत्ता या वृत्तिः२॥
भडा भडपुत्ता जहा उववाइए जाव सत्थवाहप्पभिइए पहाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए जाव निग्गच्छं॥४६॥ ति?, एवं संपेहेइ एवं संपेहित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेति कंचु०२ एवं वयासी-किण्हं देवाणुप्पिया! अन्ज
खत्तियकुंडग्गामे नगरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छति ?, तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणा खत्तियकु|मारेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल. जमालिं | खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वडावेइ वद्धावेत्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छइ, एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज समणे भगवं महावीरे जाव सम्वन्नू
सबदरिसी माहणकुंडगामस्स नयरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं| ४ीएए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव निग्गच्छति । तए णं से जमालियखत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म हहतुट्ठ० कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावइत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउरघंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह उववेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पचप्पिणंति,
॥४६१॥
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