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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १
॥२३३॥
तिपदेसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा, गोयमा ! अणद्धे समझे सपदेसे नो सअद्धे णो अमज्झे णो अपदेसे, जहा | दुपदेसिओ तहा जे समा ते भाणियवा, जे विसमा ते जहा तिपएसिओ तहा भाणियद्वा । संखेज्जपदेसिए णं भंते! खंधे किं सअड्डे ६ ? पुच्छा, गोयमा ! सिय सअद्धे अमज्झे सपदेसे सिय अण्डे समज्झे सपदेसे जहा संखेज्जपदेसिओ तहा असंखेज्जपदेसिओऽवि अणतपदेसिओऽवि ॥ ( सू २१५ ) ॥
'दुपएसए' इत्यादि, यस्य स्कन्धस्य समाः प्रदेशाः स साद्धों यस्य तु विषमाः स समध्यः सङ्ख्येयप्रदेशिकादिस्तु स्कन्धः समप्रदेशिकः इतरश्च तत्र यः समप्रदेशिकः स सार्द्धाऽमध्यः, इतरस्तु विपरीत इति ॥
परमाणुपोग्गले णं भंते ! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं देसेणं देतं फुस १ देसेणं देसे फुसह २ देसेणं सवं फुसइ ३ देसेहिं देस फुसति ४ देसेहिं देसे फुसइ ५ देसेहिं सव्वं फुसइ ६ सब्वेणं देनं फुसति ७ सब्वेणं देसे फुसति ८ सव्वेणं सव्वं फुसइ ९ १, गोयमा ! णो देसेणं देसं फुसह णो देसेणं देसे फुसति णो देसेणं सव्वं फुसइ णो देसेहिं देस फुसति नो देसेहिं देसे फुसइ नो देसेहिं सव्वं फुसति णो सव्वेणं देसं फुसइ णो सव्वेणं देसे फुसति सव्वेणं सव्वं फुसइ, एवं परमाणुपोग्गले दुपदेसियं फुलमाणे सत्तमणवमेहिं फुसति, परमाणुपोग्गले तिपएसियं फुसमाणे णिष्पच्छिमएहिं तिहिं फु०, जहा परमाणुपोग्गले तिपएसियं फुसाविओ एवं फुसावेयव्वो जाव अणंतप एसिओ ।। दुपएसिए णं भंते । खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा, ततियनवमेहिं फुसति, दुपदेसियं फुसमाणो पढमतइयसत्तमणवमेहिं फुसर, दुपदेसिओ
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५ शतके उद्देशः ७ परमाण्वादेः सार्धादिता देशस्पर्शादि
च सू २१५२१६
॥२३३॥
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