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________________ सूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः १ पौण्डरीकाध्य० अहिंसापरिभावना साधोः ॥२९७॥ ecedesercedeseeeeeeeeeeseck कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेजाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुन्नाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ इति से महतो आयाणाओ उवसंते उवट्टिए पडिविरते से भिक्खू ॥ जे इमे तसथावरा पाणा भवंति ते णो सयं समारंभइ णो वऽण्णेहिं समारंभावेंति अन्ने समारभंतेवि न समणुजाणंति इति से महतो आयाणाओ उवसंते उवहिए पडिविरते से भिक्खू ॥ जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा ते णो सयं परिगिण्हंति णो अन्नेणं परिगिण्हावेंति अन्नं परिगिण्हतंपि ण समणुजाणंति इति से महतो आयाणाओ उवसंते उवहिए पडिविरते से भिक्खू ॥ जंपिय इमं संपराइयं कम्मं कजइ, णो तं सयं करेति णो अण्णाणं कारवेति अन्नपि करेंतं ण समणुजाणइ इति, से महतो आयाणाओ उवसंते उवढिए पडिविरते॥से भिक्खू जाणेजा असणं वा ४ अस्सिं पडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूताइं जीवाइं सत्ताइंसमारंभ समुद्दिस्स कीतं पामिचं अच्छिजं अणिसह अभिहडं आहठ्ठद्देसियं तं चेतियं सिया तं (अप्पणो पुत्ताईणट्ठाए जाव आएसाए पुढो पहेणाए सामासाए पायरासाए संणिहिसंणिचओ किजइ इहएतेसिं प्राणवाणं भोयणाए) णो सयं भुंजइ णो अण्णेणं भुंजावेति अन्नंपि भुंजतं ण समणुजाणइ इति, से महतो आयाणाओ उवसंते उवहिए पडिविरते ॥ तत्थ भिक्खू परकडं परणिहितमुग्गमुप्पायणेसणासुद्धं सत्थाईयं सत्थपरिणामियं अविहिंसियं एसियं वेसियं सामुदाणियं पत्तमसणं कारणट्ठा पमाणजुत्तं अक्खोवंजणवणलेवणभूयं संजमजायामायावत्तियं बिलमिव ॥४॥२९॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600218
Book TitleSutrakritangasutram
Original Sutra AuthorShilankacharya
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1917
Total Pages856
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size16 MB
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