________________
अध्यात्म
विचार
जीतसं पह
कक रहा है हे मुनि संयमरूपी रत्नचिंतामणिको छोडके काचके टूकडेको क्यों ग्रहण करता हैं हे मुनि हे महाभाग्य गज असवारी छोडके गद्धेपर क्यों बेठता हैं हे मुनि अमृत भोजनको छोडकर जहर जडी क्यों खाता है हे महाभाग्य राज पंथको छोडके ऊजड गेले क्यों जाता है हे मुनि इसलोकम तथा परलोकमें दोनोही भवमें क्यों दुःखका |भागी होता है इस लिये हे महाभाग्य अब तुं अपने मनको तथा इंद्रियोंके विषय भोगसे पीछा हटाके आत्मज्ञान ध्यानके विषे चित्तको लगा नही तो हे महाभाग्य तेरेको नरकादिक गतियोमें नाना प्रकारके छेदनभेदन आदि मार खानी पडेगा इस लिये हे मुनि अब तुं सर्व तरहकी उपाधिको छोडकें एक आत्मज्ञान ध्यानमें लीन होजा जो तेरेको सच्चे आत्मिक सुखकी इच्छा होतो हे मुनि! ज्ञानीने मुनियोंके लिये क्या नेम रखे हैं पहली पौरुषीमें नया तत्वज्ञान पढना दूसरी पौरुषीमें अष्टांम योग समाधि ध्यान करना तीसरी पौरसीमें गोचरी जाना और चौथी पौरुषीमें पडिलेहनादिक क्रिया करना यही ज्ञानीकी आज्ञा हैं अब देख मुनि अपने घरका नेम पहली पौरुषीमें चाह दूध दूसरी पौरसीमें गद्धाचरी मालताल मसाला उडाना तीसरी पौरसीमें निद्रा देवीके साथ सुख भोगना और चौथी पौरसीमें दाल भात भक्तलोकोके घरोम तयारही है अब देख मुनि ज्ञानीका कहाहआ नेम पक्का है कि अपने घरका नेम पक्का है बाबाका बाया और हालीका हाली अब देख मुनि किस वक्तपर ज्ञान पढना और किस वखत याने किस समयपर ध्यान समाधि करना और किस समय पर क्रिया करनी किस समय खत पत्र लिखना अव कहते है कि जो लाखो वर्ष तक क्रियाकाण्ड करनेपर कार्यकी सिद्धि नहीं हो शके वह कार्य गुरु कृपासे एक पलभरमें सिद्ध हो सकती है
SET
Join Education in
For Personal & Private Use Only
Damp janelibrary.org