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________________ अध्यात्म विचार जीतसंग्रह भावार्थ:-योधी कहिये आत्माके रत्नत्रयकी प्राप्ति होनी अर्थात् अनंत ज्ञान अनन्त दर्शन और अनन्त चारित्र यह जो आत्माके मुख्य तीन गुण है यह मुख्य गुण प्राप्त करना इसमें कुछ कठिनता नही है क्योंकि अपनी चीज होनेपर निश्चयसें देखाजावेतो कुछभी कठिन दुर्लभ नहीं है घरकीचीज चाहै जब लेशता है, जो दुर्लभता बताई है वह केवल अशुद्ध व्यवहारसेंही कही गई है लेकिन योधी दुर्लभ रत्नत्रयकी प्राप्ति मेरे जैसे वेषधारी विषयभोगकी ईच्छा रखनेवालोंके लियेतों बहुतही कठीन है किंतु आत्मार्थी महापुरुषके लिये कुछभी कठिन नही है अथ धर्मभावना-ईस भावनाके विषे भव्य एसा विचार करे कि यह जीव अनादी कालसें वस्तु स्वभावे धर्मकी प्राप्ति नहीं होनेपरही यह चैतन्य चतुर्गतिके विषे परिभ्रमण कर रहा है परंतु वस्तुसहावोधम्मो वस्तुस्वभावे धर्मका सेवन करनेपर अवश्यही यह आत्मा चतुर्गतिके दुखोसें आपसेंआप मुक्त होकर मोक्ष सुखकों प्राप्त कर लेना है प्रश्नः-अधर्म किसकों कहते है ? उत्तर:-अधर्म यही है कि अपने स्वाभाविक स्वधर्म छोडके विभाविक पुद्गलीक विषयभोग तथा उपयोग रहित ओघ क्रिया में रहना वही वस्तु स्वभावे अधर्म है अर्थात् हिंसा असत्य विषय कषाय अज्ञान मिथ्यात्व रागद्वेष और मोहादिक यह सब अधर्मके अंग हैं यही आत्मधर्मके घाती शत्रु है जिस दिन अधर्मको छोडके सम्यक् गुण सहित आत्म स्वधर्मके विषे रहुंगा वोदिन में धन्य मानंगा ज्ञानीने धर्मवस्तुके || स्वभावको कहा है इसलिये जिसदिन में आत्मिक शुद्ध धर्मके विषे रमण करूंगा तबही मुझे अव्यायाध निराकुल | और अनंत सुखमय आत्मिक सुग्वकी प्राप्ति होगा. in Education For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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