SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म विचार जीतसंग्रह ॥ ३८ ॥ ॥३८॥ आश्रवभावना-यह जीव आश्रवसें अनादिकालसें च्यारुं गतिके विषे परिभ्रमण कर रहा है आश्रवके आनेका दो भेद है एक शुभ आश्रव दूसरा अशुभ आश्रव अशुभ ओश्रव आनेका रास्ता क्रोध मान माया लोभ हिंसा असत्य अदत्त अब्रह्म परिग्रह पञ्च इंद्रिय अशुद्ध उपयोग अशुभ विकल्प आदिसें आश्रव आता है और इस आश्रवद्वारा यह जीव बन्ध रहा है उपरोक्त आश्रव आत्मार्थीकों बंध करना चाहिये. ज्ञान विचारके दोहा__ संज्ञा लेश्या आदि त्रय । इन्द्रिय वसता होय ॥ आर्तरौद्रकुध्यानता । मोह पाप पद सोय ॥१॥ अब आश्रवका स्वरूप विशेष बतलाते हैं-सोले संज्ञा प्रथमकी तीन.लेश्या और पांच इन्द्रियोंके तेविश विषय तथा आर्त रोद्र ध्यान राग द्वेष और मोह यह सब आश्रव आणेके द्वारहै अब मोक्षकाकारण सम्बरहै वह कहते हैं दोहा-मोक्ष कारण सम्बर है । आश्रव दुःखकी खांण || शुद्धजाणो सो आदरो। छोडोखेंचा ताण ॥१॥ कर्मबन्ध हेतुजीवक । मनवच काया योग ॥ कारण स्थिति बंध है। रागादिक उपयोग ॥२॥ भावार्थ:-जीवको कर्म बम्धका कारण केवल मन वचन काय योगसे स्थितिबंध रागादिसें पडता हैं अशुभ उपयोगसे प्रकृति और प्रदेश बंध पडता है क्योंकि मनादि योगसे शुभाशुभदोनोंही आश्रवका त्याग करना चाहिये २ दोहा--रागद्वेष अरु अज्ञानता । भाव आश्रव भवि जाण ॥ अष्ट कर्म दलागमन । द्रव्य आश्रव प्रमाण ॥१॥ अथ सम्बर भावना. भावार्थः-आश्रव रुकनेसें सम्बर होता है सम्बर होनेपर अवश्यही आत्माका कल्याण होता है अर्थात् सम्बरकी प्राप्ति होनेपर अवश्यही अनंत सुखमय निर्वाण पदका प्राप्ति हो जाती है सम्बरकी in Education For Personal & Private Use Only wnw.jainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy