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________________ जीतसंग्रह J९इसलिये धोबीके कुत्तेकीनाइ न इधरके रहे है न उधरके रहै कहनेका तात्पर्य यही है कि जब तुम संसारमे | अध्यात्म-56 विचार JE आयेछे तब कुछ पूजी लायेथे उस पुंजीकी कुछ वृद्धि करी नही लेकिन उन पुंजीका यहां व्यय करके पीछे खाली हाथ घिसते हुये भूल पुजीको यहां खोके युही चले गये इसलिये कमाईबिन आगे जाकर क्या खाओगे इसलिये संसारमें आयेतो क्या और नहीं आयेतो क्या कुछ सारनही इसलिये पशुकी तरह मनुष्य जन्मको युही हार गये. दोहा-आजकालदिन पाँचौ । जंगल होगा वास ॥ उपर गधा लेटसी । ढोर चरेंगे घास ॥१॥ ___ क्युं सूता है निदमें । गाफल करो विचार ॥ एक दिन ऐसा आयगा । सोनापैर पसार ॥२॥ भावार्थ:-हे मूख तु निर्भय होकर मोहरूपी गाढ निद्रामें कैसे सोता है तेरे शिरपर काल चक्र घूम रहा है ईस लिये हे गाफिल मोह निद्रामें जागृत होकर परमात्माको भजके अपना कल्याण करले जो तुं प्रमाद निद्राको नहि छोडके परत्माको नहि भजेगो तो अंतसमयमें दोनो हाथ घसता हुआ बुरी हालतसे लम्बे पैर पसारके स्मशानके विषे गधेकी तरह लेटकर सीधाही यमपुरीका टीकट लेनाही पडेगा ॥१॥ दोहा-परमात्म भजे नहीं । नही मुनिसुं हेत ॥ ऐसे पुत्रको जननी तुम । कभी जन्म मत देत ॥१॥ अथ मायाविषे दोहामायावडी है मोहिनी । मोहे जान अजान ॥ भोगेतो छूटे नही । भरभर मारे बान ॥२॥ माया तरुवर जहरका । शोक दुःख संताप ॥ शीतलता स्वप्ने नही । फल फीका तनु ताप ॥३॥ कामDOWapMान्साकाचार الاكاليل فاكة للفاسق علميه والمتعلمها Join Education international For Personal & Private Use Only www.inneby.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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