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जीतसंग्रह
सर्वकार्यमें मेरी सफलताही होगी ऐसे दृढ विचार करनेवाले वीरपुरुषकों वैसेही फल मिलते है अहिंसा
सत्यवचन शुद्धब्रह्मचर्य और शुद्धआत्मविचार करनेपर आत्माके सर्वगुण आपमें आप प्रगट होजाते ह सदैव अध्यात्मविचार
सद्गुणोकाही विचार करना चहिये गाथा-जंम्बसेंइजीवो गुणं च दोष चइत्थंजम्ममि तंपावेइपुण्णभावे अम्भासेण पुणोतेण ॥१॥ भावार्थ:-जे गुण या दोष इस भवमें तथा भवान्तरमें कियेहो वैसेही फल प्राप्त होते हैं पूर्वअभ्याससे अर्थात् पूर्व संस्कारसे कर्मकेबंध तथा नाश प्रणामसेंही होते है गाथा-परसंयोगथीबन्धछेरे परवियागेमोक्ष तेणेतजीपरमेलावडोरे एकपणो निजपोषरे ॥१॥ कारणजोगेहोबंधेबंधने कारणमुक्तिमुकाय आश्रवसंबरनाम अनुक्रमे हेयउपादेयसुणाय ॥२॥ इसलिये हलते चलते उठते बैठते मोते खाते पीते आत्मउपयोगबिना समयसमयकेविषे नानाप्रकारके कर्म आरहेहै इसलिये उपाध्याय जीभी कहगये है गाथा-भिन्नदेहीते भाविये ज्युंआपहीमें
आप स्वप्नातरनही होवे देहांतर भ्रमताप ॥१॥ शुद्वात्म स्वरूपमें रमणहोनेपर कर्म आपमेआप नष्ट हो जाते है गाथा-परपरणतिपरसंगसे उपजतविणसतजीव मिटेमोहपरभावको अवलअवांधिशिव ॥१॥ आत्मारामानुभवभजो
तजोपरतणिमाया एहेसार जिनवचननो वलेयह शिवछाया ॥२॥ यह आत्मा जब अपनेस्वरुपसे गिरके परमें Jफसताहैं अर्थात् अपने उपयोगसे शन्य होजाता है उसी समय राग द्वेष और मोहरूपी फांसीमें फसकर कर्म
रुपी जालमें मकडी जालकी तरह आपसे आप बंधीज जाता है अशुद्ध परिणामोंसें तंदुलीये मच्छकी तरह तंदुलीयमच्छका शरीर चावलके दाणेजितना छोटा होता है लेकिन अशुद्ध रोद्र परिणाम ध्यानमें दोघडीकी
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