SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म जीतसंग्रह विचार मु०-प्रच्छन्नं परमज्योति-रात्मनोज्ञानभस्मना ॥ क्षणादाविर्भवत्युग्र । ध्यानवात प्रचारतः ॥२४॥ शब्दार्थः-(प्रच्छन्नं परमज्योतिः) कर्मोसें छादितहुए परमज्योतिमय आत्माका प्रकाश उनकों दूर करनेकेलिये (उग्रध्यानवात प्रचारतः) एकउग्र इसलिये अतिकठिन आत्मध्यानरूपी वायुही हैं अर्थात् ज्ञानध्यानरूपी वायुके जोरमें [क्षणात् ] एकक्षणभरमें कर्मरूपी काष्ठ याने ध्यानरूपी अग्निके प्रचारमें कर्मरूपी काष्टको भस्मीभूत करके योगीराज उडाके [आविर्भवति अपने आत्माको प्रकाशमय करदेता है. ॥ २४॥ भावार्थ:-नाना प्रकारके कर्मोंसे आच्छादितहुआ आत्माका प्रकाश ढकाहुआ उनकों दूरकरनेके लिये अर्थात् कर्मरूपी शत्रुकों नाशकरनेकेलिये एक आत्मध्यानरूपी अग्नि वायुके समान हैं. योगी ध्यानरूपी अग्निसें कर्मोकों जलाकर अर्थात आवर्णको दर करके अपने आत्माको स्वच्छ निर्मल करदेता है. कैसे निर्मलकर देता है. गाथा-ज्यूंदारुकेगंजको नरनहिशकउठाय, तनकआगसंयोगते छनएकमेंउडजाय. ॥१॥ तैसें योगीराज कर्मोके गंजको छनभरमें भस्मीभूत करके उडादेते हैं ॥२४॥ मु०-यथैवाऽभ्युदितःसूयों। विदधातिमहान्तरम् ॥ चारित्रपरमज्योति-द्योंतितात्मातथामुनिः ॥२५॥ शब्दार्थ:-यथैव अथवा जैसे (अभ्युदितः सूयः) उदितहुआ सूर्य [महान्तरं] तिमिरकों याने अंधकारको [विदधाति] दूरकरता है (तथा) जैसे (चारित्रपरमज्योतिर्योतितात्मा) सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रको प्राप्तहुवा आत्मज्ञानसे प्रकाशित आत्म अध्यात्म ज्ञानवाला (मुनिः) मुनिराज अज्ञानरूपी तिमिरकों अवश्यही दरकरके सिद्धपदको प्राप्त in Education international For Personal & Private Use Only www.ebay.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy