SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीनसंग्रह ग्रीसें भोजनकी सिद्धि नही होती तैसे आत्मज्ञान विना नाना प्रकारके तप जपादिक कर्मकांडकी किरियासें मोक्ष अध्यात्मविचार | सुखकी सिद्धि नहीं होती इस लिये शुद्ध व्यवहार ज्ञानयोग सहित आत्मज्ञान और आत्मध्यानसेही मोक्ष हाती है लेकिन केवल कर्म योगसे मोक्ष नही होती (शंका) आपका कहना है कि कर्म योगसे मोक्ष नही होती सो ठिक है | लेकिन कर्मयोगके विषे भी विचित्र प्रकारकी शक्ति रही हई है क्योंकि जितने महापुरुषों मोक्ष गये है वह सर्व प्रकारे कर्म योगसे ही गये हुये है तब आप एकेले ज्ञान योगसे मोक्ष कैसे कहते हो (समाधान) हे देवाणु प्रिये तेरा कहना ठिक है लेकिन जो जिसका विरोधी नहीं होतें वह उनके नाश करनेके लिये कैसें सामर्थ हो सकेंगे क्योंकि जो केवल JE ज्ञानरहित कर्मयोग है वहतो मन इंद्रियोंकी शुद्धिके लिये है रेचकी तरह लेकिन मोक्षके लिये नही है क्योंकी कर्म-15 योगके और अज्ञान के परस्पर विरोध ही नहीं हैं तब कहो भला उनके नाश करनेके लिये कैसे सामर्थ होगे क्योंकि वह ay दोनोंही जड हैं इस लिये जो कर्मयोग हैं वह अज्ञानकी निवृत्ति करनेके लिये कैसे समर्थ हो सकेगे इस लिये अज्ञा- | नको दूर करनेके लिये एक ज्ञान योगही सामर्थ हैं दोहा-ज्ञानरहित क्रियाकही । काशकुमुमउपमान ॥ लोकालोक प्रकाशकर । ज्ञानएक परधान ॥१॥ कष्टकरी संयमधरो । गालो निज देह ।। ज्ञानदशा विण जीवने । नही दुःखनो छेह ॥ २॥ अध्यात्मविन जे क्रिया । ते तनुमल तोले ॥ ममकारादिक योगथी । ज्ञानी एम बोले ॥ ३ ॥ 'आत्मज्ञानी श्रमण कहावे बीजातो द्रव्यलिंगीरे' विचारे कितनेक बालजीवों वेषधारियोंको मुनि यति कहते ع والتحليلات و الأبحانکانے اللي اللي قالك انا في ال لا لالالالالالالالالم ستلند نشانتانانتالایمان لانتشافهاتفت داده لما نشان in Education For Personal & Private Use Only hirulu.ininelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy