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________________ P सेव ॥ उलालो ॥ सुरनर सेव करे कर जोडी । अणहुंता लहिये एक कोडी ॥ सिंहासन पर बैठा सोहे । देखी अखंडल मन मोहे ॥ श्री पास० ॥ ८ । ढाल ।। भामंडल सोहे भलारे । पूठे घन जिम सूर । देव दुंदुर्ण घणां घणारे । शांति राग रस पूर ॥ उलालो। जा देवदुंदुभी घणाघण बाजे । तसभर सयल कुमति भाजे ॥ तीन छत्र शिरउपर सोहे । त्रिजन केरा प्रभु मन मोहे ॥ श्री पास० ॥९॥ ॥ ढाल ।। सुरपति वास आणी दियेरे । थापा आठ गणराय ।। संघ थापी तिहां जिनवरुरे । सोलह सहस सुनिराय ॥ उलाला ॥ सोलह सहस मुनिराय वखाणुं । अडतीस सहस साध्वी जाणुं ॥ एक लाख चौसठ हजार । इतना श्रावक समकित धार ।। श्री पास ॥ १० ॥ सहस सतावीस जाणियरे । उपरला तीन लाख ॥ ये प्रतिबोधी श्राविकारे । कल्पमत्रनी साख ॥ उलालो ॥४ कल्पसूत्रनी साखे जाणुं । पास तणो परिवार वखाणुं ॥ विहार करे जिन देश विदेश । भावक जीवने दे उपदेश ॥ श्रीपास ॥११॥ नील वरण तनु सोभतारे । कमल गंध परे वास ॥ वरस एकसौ आउखोरे । भोगवीयो श्री पास ।। उलालो । वरस एकसौ आउखो | पाली । जन्म मरण तणा भय टाली ।। नव हाथ प्रमाणे देह । प्रभुजी सोहे बहु गुण गेह ॥ श्री पास० ॥ १२ ॥ समेतशिखर गिरि उपरेरे । पहोता पारसनाथ ॥ किनी मास संलेखनारे तेतीस मुनिवर साथ ॥ उलालो ॥ तेतीस मुनिवर साथै लिना । अष्टकर्म तणा क्षय किना ॥ श्रावण सुदी अष्टमी दिन जाणो । प्रभुजी पहाता पद निर्वाणो ॥ श्री पास जिनजीरे जी ।। १३ ।। इति ।। ॥ ढाल चौथी॥ | वसुधा तल मंडण जाणरे । संखेश्वर तीर्थ वखाणरे ।। अश्वसेन नरेसर नंदरे। जसु प्रणमे सुरनर वृंदरे ॥ १॥ धरणिंद्र पमुहा देवारे । जसु एहनी सारे सेवा ।। जिणे कमठ हठी मद गाल्योरे । जिणे जिन शासन अजुवाल्यो ।।२।। ध्वीप सिंह फणीधर RASACAMARGA minu tion international For Personal & Private Us Only
SR No.600208
Book TitleSadhu Pratikramanadi Sutrani
Original Sutra AuthorJagjivan Jivraj Kothari
Author
PublisherJagjivan Jivraj Kothari
Publication Year1925
Total Pages92
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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