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________________ सूत्र. साधुसाध्वी ए अष्ट प्रवचनमाता, रूडीपरे पाली नहीं, साधुतणे धर्म सदैव, श्रावकतणे धर्मे सामायिक पोसह लीधे, प्रतिक्रमण || जे कांइ खंडन विराधना कीधी होय, चारित्राचार विषइओ,अनेरा जे कोइ अतिचार० ॥ ४॥ विशेषतश्चारित्राचारे तपोधनतणे धर्मे॥वयछकं कायछकं, अकप्पो गिहिभायणं॥ पलिअंक निसिज्जा जए, सिणाणं सोभवज्जणं ॥५॥ व्रतपट्के पहिले महाव्रतें, प्राणातिपात, सूक्ष्म बादर त्रस थावर जीवतणी | ॐ विराधना हुई.बीजें महावतें क्रोध लोभ भय हास्य लगें जूठो बोल्यो. तीजें अदत्तादान विरमणमहाव- | ४ तें ॥ सामिजीवादत्तं, तित्थयरअदत्तं तहेव य गुरुहिं॥ एवमदत्तं चउहा, पण्णत्तं वीयराएहि ॥१॥ स्वामि अ-* दत्त, जीव अदत्त, तीर्थकर अदत्त, गुरु अदत्त, ए चतुर्विध अदत्तादान मांहि जे कांइ अदत्त परिभोगव्यो । चोथे महाव्रतें॥ वसहीकहनिसिजिदिय, कुड्डिंतर पुश्वकीलिए पणिए ॥ अइमायाहार विभूसणाई, नवबं|| भचेर गुत्तिओ॥१॥ए नव वाड सुधी पाली नहीं, सुहणे स्वप्नान्तरे दृष्टि विपर्यास हुओ. पंचमें महाव तें धर्मोपगरणने विषे, इच्छा मूर्छा गृद्धि आसक्ति धरी, अधिको उपगरण वावों, पर्व तिथी पडिलेह- 18 3 वो विसार्यो, छट्टे रात्री भोजन विरमण व्रतें, असुरोभात पाणी कीधो, छारोद्गार आव्यो, पात्रे पात्राबंधे तक्रा KASARHARASHARANAS ॥ ६ ॥ For Personal & Private Use Only
SR No.600208
Book TitleSadhu Pratikramanadi Sutrani
Original Sutra AuthorJagjivan Jivraj Kothari
Author
PublisherJagjivan Jivraj Kothari
Publication Year1925
Total Pages92
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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