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________________ दर्शनाचारे आठ अतिचार॥निस्संकिअ निक्कंखिअ, निन्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठीअ॥ उवबूह- 18 थिरी करणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ट॥३॥ देव गुरु धर्मतणे विषे निस्संकपणो न कधिो, तथा एकान्त निश्चय है। धों नहीं, धर्म संबंधिआ फलतणे विषे निस्संदेह बुद्धिधरी नहीं, साधु साध्वी तणी निंदा जुगुप्सा कीधी, मिथ्यात्वीतणी पूजा प्रभावना देखी संघमाहिं गुणवंत तणी अनुपवृंहणा, आस्थिरीकरण, अवात्सल्य, अ-18 प्रीति, अभक्ति निपजावी. तथा देवद्रव्य गुरुद्रव्य साधारणद्रव्य भक्षित, उपेक्षित, प्रज्ञापराधे विणास्यो, विणसंतो उवेख्यो, छतीशक्तिए सारसंभाल न कीधी, ठवणायारय हाथथकी पाड्यो, पडिलेहवो विसार्यो, | जिनभुवनतणी चोरासी आशातना, गुरु प्रते तेत्रीस आशातना कीधी. दर्शनाचार विपइओ अनेरो जे | कोई अतिचार ॥३॥ चारित्राचारे आठ अतिचार॥पणिहाण जोगजुत्तो, पंचहिं समिईहिं तिहिं गुत्तिहिं ॥ एस चरि-| त्तायारो, अट्ठविहो होइ नायब्वो ॥४॥ इरियासमिति, भासासमिति, एषणासमिति, आदानभंडमत्तनि| क्षेवणासमिति, उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाण पारिट्ठावणियासमिति, मनोगुप्ति वचनगुप्ति, कायगुप्ति, For Personal & P e Use Only
SR No.600208
Book TitleSadhu Pratikramanadi Sutrani
Original Sutra AuthorJagjivan Jivraj Kothari
Author
PublisherJagjivan Jivraj Kothari
Publication Year1925
Total Pages92
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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