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________________ अध्ययन १६ मुं. अवग्रह-प्रतिमा. निर्दोष स्थान विधिवत् माग्या पछी स्थानना मालीकने कहेवु के 'हे आयुष्मन् ! तमारी परवानगी छे त्यांसुधी जेटला अमारा समानधर्मी साधुओ आवशे तेमनी साथे अमे अहिं रहेशु, त्यारवाद अमे चाल्या जशुं.' पछी भावता सांभोगिक साधुओने यथोचित अन्नपानादिकथी अने बीजा असांभोगिक साधुओने बाजोठ पाट विगेरेथी निमंत्रित करवा चूकवू नहि. सूइ दोरो नेरणी विगेरे लावीने काम कर्या बाद गृहस्थने त्यां जइ तेने ते (हाथमा राखीने के भूमिपर स्थापीने) | पाछां सोंपवां, पण हाथोहाथ देवां नहिं. ( पोताना हाथे गृहस्थना हाथमा मूकवां नहिं.) कोइ रीते संयममा बाधक न भावे एवी वसतिमाज मुनिए विचारीने रहे. ___ अध्ययन १७ मुं. स्थान. मुनिमओए उभा रहेवा माटेनी जग्या केवी पसंद करवी ? गाम नगर के संनिवेशमा जता जे स्थान जीवाकुळ मालम पडे ते अयोग्य गणीने पसंद करवू नहिं, पण निरवद्यनिर्दोष स्थळज पसंद करी लेवु अने तेमा उचित प्रतिज्ञा धारीने वर्तवू. १ जे एक साथे मंडळीमा बेसी आहार पाणी करी शके तेवा. For Personal Private Use Only whaw.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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