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श्री
प्रशमरति
होय छ भने वळी निज जननी-मातानी पेरे श्रोताजनोना कानने अने मनने प्रसन्न करनारी होय छे. चार प्रकारनी धर्म
कथामां बाकी रहेली कथा संबंधी शास्त्रकार हवे कहे छे. जे कथावडे श्रोताजनो नरकादिक दुःखो थकी भय पामे ते प्रकरणम् |संवेदनी या संवेजनी कथा अने जे कथावडे कामभोगथकी निर्वेद-वैराग्य पामे ते कथानुं नाम निर्वेदनी के एम जाणवू.
नरकगतिमां शीत-तापनी वेदनानो एक निमेष मात्र पण विरह नथी मने एवी वेदना ओछामा ओछी दशहजार वर्ष पर्यंत भने उत्कृष्टी ३३ सागरोपम पर्यत वेदवी पडे छ. तियचयोनिमां शीत, ताप, भृख, तरस, अति भारवहन संबंधी दुःख उपरांत ताडन तर्जन दमन छेदनादि संबंधी दुःख सहेवां पडे छे. मनुष्यगतिमां अंग उपांग तथा इन्द्रियनी खोड उपरांत ज्वर कोढ प्रमुख अनेक प्रकारनी व्याधि-वेदना सहेवी पडे छे. वळी अनेक प्रकारनी चिन्ताओ, भय अने शोक व्यापे छे. तेमज इष्टानिष्ट, प्रियाप्रिय, संयोगवियोग प्रसंगे थतां रागद्वेषादि विकार अने कर्मयोगे थता वध-बंधन, दासत्व प्रमुखथी भारे वेदना अनुभवी पडे छे. देवगतिमां पण पर उत्कर्ष अने निज अपकर्ष देखीने दुःख उपजे छे. बळवान् पुण्यशाळी देवताओनु बीजा अल्प पुण्यवाळा देवताओए दासत्व विगेरे करवु पडे छे. तेमज च्यवनकाळे छ मास आयुष् बाकी रहेता महा अशुचिमय निज उत्पत्तिस्थान अवधिज्ञानथी जाणीने तेमने भारे दुःख अनुभव पडे छे. ए रीते चार गतिमां दुःख रहेला छे. तेथी उद्विग्न-विरक्त बनी केवळ मोक्षप्राप्ति माटे ज प्रयत्न कर्तव्य छ, एवो बोध आपनारी कथा निर्वेदनी
कहेवाय छे. सुखनी भ्रान्तिथी दुःखमा ज फसावी देनारा कामभोगी विरक्त करनारी ते कथा छे. क्षणिक कामभोग पछी * तेने तृप्ति आपी शकता नथी. वळी स्त्री-योनि पण दुर्गन्धी, अशुचिवाळी अने अत्यन्त दुर्गच्छनिक होवाथी तेमा रति
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