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________________ ते पाणातिपातने एटले जीवहिंसाने (ते के0 ) हे जगवन् ! एवीरीते शिप्य वली गुरुमने एय कहे वे के. हे जगवन् ! (स-|| प्रतिक वं के०)सर्वथकी अथवा सर्व प्रकारनी हिंसाने ( पच्चरकामि के०) प्रसाख्यामि एटले तनुं हुं. अर्थात सर्व प्रकारना जीवनी अर्थः | हिंसाने हुं वोसराबु छु. ( से के० ) ते जीवो केवा बे? तो के, (मुहुमं के0) मूदम एटले जे जीवो चमचहुथी देखाय नही ते ॥७ ॥ (वा के ) अथवा ( वायरं के० ) वादर एटले चर्मचकृयो देखाय तवा (वा के0 ) अथवा ( तसं के0 ) त्रसं एटले ज हाली चाली शके राह तमकादिकथी त्रास पामेले तेवा जीवो (वा के0) अथवा (यावरं के) स्यावर एटले जे जीवी एकज स्थानके रहे, अने हाली चाली शके नही तेवा पृथ्वी, अप, तेल, वान अने वनस्पति ए पांच प्रकारना यावर जीवो, (वा के०) अथवा एवीरीतना चार प्रकारना जीवोने हं ( सयं के०) माहारी पोतानी मेले (नेव पाणे अश्वाला के0) पाणयकी बोमाबुज नही, अर्थात ए चारे प्रकारना जावानी हूं मारी पोतानी मेलें हिंसा करुं नही. तेमज ( छान्नेहिं के) बीजा पासे (नेव पाणे अश्वायाविड़ा के0) ए चारे प्रकारना जीवोने तमना माणोयकी बगेमायुं नही, अर्यात वीजापासे ए जीवो. नी हिंसा करावु नही.॥ ॥ पाणे अश्वायंते वि अन्ने न समगुजाणामि ॥ जावज्जीवाए तिविहं तिविदेणं मणणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं वि अनं न समगुजाणामि, तस्स नंते पक्किमा मि, निंदामि गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ अर्थः-(पाणे के0) जीवोने (अश्वायंते के) पाणयकी बोमावता अर्यात् जीवोनी हिंसा करता एवा (अन्नेवि के0 ) बीजां माणसोने पण ( न समाजाणामि के0 ) हुँ आशा आपुं नही. ते क्या सुधि ? तो के ( जावजीचाए केc ) बेक मारी जींदगी रहे सांसुधि अर्थात् हुँ जीवू सांसुधि (तिविहं तिविहेणं के0 ) त्रिवि त्रिविधे करीने (मणेणं के ) मनें करीने, (वायाए के) बचनें करीने, ( कारणं के०) कायायें करीने ( न करेमि के ) हुं जीवोनी हिंसा करुं नही, (न का || ३|| खेमि के ) हुं जोवोनी हिंसा कराएँ नही, ( करतंपि अन्नं के0 ) जीवहिंसा करता एवा वीजा माणसने पण ( न समाणुजा| णामि के० ) हुं मारा मुखथी आशा आपुं नही, अर्थात् जीवाहिंसा करनार माणसनी हुं अनुमोदना करूं नही. वली (जेते १० milineaamiARTHANA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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