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________________ साधु प्रतिष् ३६१ ॥ ॥ हरिगीत बंदः ॥ ॥ किधपमपधुधुमिघोंघों सकिघरघरवं । दोंदों कि दोंदोंदाग्मिदीदा गिदी कि मकिरणवं ॥ ऊजिकि फ्रेंकणार एरए निज कि निजजनरंजनं । सुरशैलशिखरे जवतु सुखदं पार्श्वजिनपतिमनं ॥ १ ॥ कटरें गिनियोंगिनिकिटनिमिय घुघुटपाट | गुणगुणण गुगल र एकिणें गुणगुणमल गौरवं ॥ ऊजिऊँकिफ्रेंकेंड रणरण निज कि निजजनमऊना । कलयंति कमला कलितकलमलमुकलमीशमहे जिना ॥ २ ॥ वक्तेिं कि ठाक पट्टा ताड्यते । तललों किलोंलोंगें पित्रेपिनिकेंपिकेंपिनि वाद्यते || ॐ किन थुगियुगिनियों गिधोंगिनि कलरवे । जिनमतमनंतं महिमतनुता नमति मुरनरमुछवे ॥ ३ ॥ पुकिदांपुपु दिषदांषुपु दिदोदों यंवरे । चाचपटचचपटरा किोहों का मेसेंकेंवरे ॥ तिहां सरगमपधुनि निधपमगरसससससससुरसेवता । जिननाट्यरंगे कुशलमुनिशं दिशतु शासनदेवता ॥ ४ ॥ ॥ इति श्री जिनकुशलसूरिजीकृत पार्श्वजिन स्तुतिः || Jain Education International ॥ अथ श्री चतुर्दशी स्तुतिः ॥ ४६ For Personal & Private Use Only सूत्र अर्थ ॥३६२ www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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