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साधु
प्रतिष्
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॥ हरिगीत बंदः ॥
॥ किधपमपधुधुमिघोंघों सकिघरघरवं । दोंदों कि दोंदोंदाग्मिदीदा गिदी कि मकिरणवं ॥ ऊजिकि फ्रेंकणार एरए निज कि निजजनरंजनं । सुरशैलशिखरे जवतु सुखदं पार्श्वजिनपतिमनं ॥ १ ॥ कटरें गिनियोंगिनिकिटनिमिय घुघुटपाट | गुणगुणण गुगल र एकिणें गुणगुणमल गौरवं ॥ ऊजिऊँकिफ्रेंकेंड रणरण निज कि निजजनमऊना । कलयंति कमला कलितकलमलमुकलमीशमहे जिना ॥ २ ॥ वक्तेिं कि ठाक पट्टा ताड्यते । तललों किलोंलोंगें पित्रेपिनिकेंपिकेंपिनि वाद्यते || ॐ किन थुगियुगिनियों गिधोंगिनि कलरवे । जिनमतमनंतं महिमतनुता नमति मुरनरमुछवे ॥ ३ ॥ पुकिदांपुपु दिषदांषुपु दिदोदों यंवरे । चाचपटचचपटरा किोहों का मेसेंकेंवरे ॥ तिहां सरगमपधुनि निधपमगरसससससससुरसेवता । जिननाट्यरंगे कुशलमुनिशं दिशतु शासनदेवता ॥ ४ ॥
॥ इति श्री जिनकुशलसूरिजीकृत पार्श्वजिन स्तुतिः ||
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॥ अथ श्री चतुर्दशी स्तुतिः ॥
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सूत्र अर्थ
॥३६२
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