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________________ साप । मूत्र अर्थः ॥ अंतररात्माने क्या विश्वास ने क्यां आनंद ने, अने वहिरात्माने क्यों ठे ते देखा है. ॥ प्रतिा ॥ विश्वासानंदयोः स्थानं स्याज्जगदचेतसाम् । कानंदः क च विश्वालः स्वस्मिन्नेवात्मवेदिनाम् ॥ ६ ॥ १३४॥ नी सघली चंचलता अशुन प्रवर्तनने लीधे होय . माटे अशुनने दुर करी शुजने ग्रहण करवू, अने शुन ग्रहण कर्या पठी असंत शुक्ष एवा आत्मानम बेवटे मनर्थध्याववो. आ सूचना यथार्थ लख इ नथी. परंतु जे वांधवोनी चा दोय तेणे भने मलg, तो हुँ कंक मने खबर ले तेवो मार्ग देखामीश. परंतु तेमां पदेली सरत तो ए के, तेणे मायाने गेमी केवल सरल थ. इजर्बु. जे वांधवो पत्र लखले तेने पण उत्तर बनतां सुध) मारी शक्तिप्रमाणे आपीश. परंतु मारा बांधवोने मारी विनति ए डे के विज्ञााने खातर जो पुवानी जरूर राखता हो, तो फायदानो संभव नबो डे, परंतु परिणति सुधारवा श्छा होय तो सरल घा जवानी असंत आवश्यक्ता बे. उपर जणावेली चार लावनाने मन, वचन अने क्रियाया सेवनारने कषाय तो तीव्रपणे र. हेताज नथी. एम ए नावनानो अज्याम करतां योमाज दहामामां मालम पमी आवशे. अने आज लावनाने विशेष सेवतां पोतानी जानी चुप्रिमाणे पण पोताने अनुक्रम मालम पम्तो जशे के क्रोधनी जगोए दमा, माननी जगोए नम्रता, मायानी जगोर सरलता, अने लोजनी जगोए संतोष, आ चार एटले दमा, नम्रता, सरलता अने संतोष ए प्राप्त थशे. एम थतां थो. मा कालमा सम्यता के प्रांतरात्मपाणु आवशे. अने बदिरात्माजाव के मिथ्यात्वपणुं पलायन करवा मांझशे. उत्तरोत्तर किशेष अच्यासयी, अत्तिपणुं बोमी वृत्ति यशे, वृत्तिपणामांयी तेनोज विशेष अच्यास करतां सर्व वृत्ति अवस्या अनुनवशे. अने पोताने अंतरमा एम देखातुं जशे के हवे तो मात्र मने बहुन पातळा क्यांय देखायडे, अने विशेष नागे तो हमा, नम्रता, सरलता के संतोषज रहे डे, तो पळो तेने घणोज लान आ कालमां थयो एम समजाशे. परंतु आ वखते पण हवे हुँ ठीक छ, एम करी तेनुं पण मान न चमाव, कारण के आ लेखकने कपाय साग करवानो कपाय चमतो हतो, ते आशरे एक महिने खबर पझी, माटे कषायना सागनो कषाय न आवे तेनी पण साथे संजाल राखतां जवी. तो चारित्र जे आत्मा पोतेज डे. ते एने क्योपशम प्रमाणे जगाशे, ने सां एटले पोताना सानावमां रमणताय तेने आनंद थशे.-जा. क. dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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