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________________ साधु ॥ प्रति अर्थः तिदुअण-जण-आणंद-चंद नुवण-तय-दिणयर ॥ जय मश्-मणि-वारि-वाह जयजंतु-पियामह । नय-व्यि-पास-नाह नाहत्तण कुण मह ॥ ७॥ अर्थ:-हे जोश्यमणकमलजसल (हे योगिमन:कमलचमर!) जोश्य के योगिलोक तेमनु, मण के मन ते रूप, कमलजसल के कमलने विषे अमर समान एवा. एटले जेम कमलने विषे चमर रहे डे., तेम योगि पुरुषना मनरूप कमलमांत्रमरनी पेठे निवास करी रहेता एवा. अथवा कमलनसल कहेता जसलकमल एटले जसल के योगिना मनरूप चमर, तेने रहे. वामे कमल समान । (जसल शब्द अने कमल शब्द ए बेनो प्राकृत व्याकरणना नियमनो विकल्प थवाथी पूर्व निपात थयो बे. एटले नसल शब्द प्रथम आयो अने कमल शब्द आगल थयो) स्पष्टार्थ ए के, योग जेमणे साध्यो ले तेने योगी कहीए. एटले मन वचन अने काया तेमना योग, जेमने सिह थया बे एवा संयमी पुरुषो, तेमना मनरूप जमराने कमलरूप बो. एटले जमराने जेम कमलने विषे घणी प्रीति डे, तेम संयमी पुरुषोना मनरूप जमराने तमारा स्वरूपमां प्रीति ले. अथवा लमरो जेम अन्य रसनो साग करीने कमलना मकरंद रसनो आस्वाद करे , तेम संयमी पुरुषोनुं मन, विषय रसनो आस्वाद साग करीने तमारे विषे रहेला अपार ज्ञानादि गुणोनो आस्वाद करे , माटे ए प्रकार, संबोधन कहां. वली हे जयपंजरकुंजर ! जय के सात प्रकारना लय (आलोकलय, परलोकलय, आदानलय, अकस्मात्नय, वेदनाजय, मरणजय, अपयशनय.) तेरूप, पंजर के पांजरं तेने विष, कुंजर के हाथी समान. एटले जम हाथी पांजराने अवगणना करी जांगी नाखी स्वतंत्र वर्ते, तेम हे नगवन् ! तमो पण जयरूप पांजरांने तोमी नाख पोताना स्वनावमा वर्तो बो. वली हे तिहुअणजणआणंदचंद ( हे विजुवनजनानंदचं!) तिहुयण के त्रण जगतना, जण के लोक तेपन, आणंद के आनंदकारी, चंद के० चं समान, एटले जेम चश्मा पोताना शीतलपणादिक गुणोवमे आनंद नपजावे , तेम तमो पण पोताना अलौकिक गुणवत्रण जगत्ना रहेनार माणिमात्रने आनंद नपजावो बो. वली हे भुवणत्तयदिणयर ( हे नुवनत्रयदिनकर !) भुवणत्तय के त्रण जगन्ने विषे, दिणयर के सूर्य समान. एटले जेम सूर्य अंधकारनो नाश करी लोकने मुखी ॥२६॥ dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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