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________________ यतिख समन्वय. मारकवायहीणतं । पमिबंधे विन कश्या एमेव मुखिस्स सुहजोगे ॥४०॥ अपयट्टो वि पयहो जावेणं एस जेण तस्सत्ती। श्रस्क लिया निविमा कम्मकवसमजोगाउँ ॥ए॥ निर जुकरसन्नू किंचि अवत्थंग असुहमन्नं । मुंज तम्मि न रजाइ सुहजोश्रणलाखसो धणिकं ॥५०॥श्य सुधचरणसहित सेवंतो दबर्ड विरुवं पि । सघागुणेण एसो न जावचरणं अश्वमइ ॥ ५१ ॥ श्रवहपन्नाजणिकं जावं पालेटमायरस्काए । तीए चेव ण हाणी सुअकेवक्षिणा जलं जणियं ॥५॥चिस्किलबाखमावयसरेणुकंटगतणे बहुश्रजले श्राखोगो विनिय पहे को णु विसेसो जयंतस्स ॥ ५३॥ जयणाजयणं च गिही सचित्तमीसे परित्तणंते श्र। न विजाएंति यासिं श्रवहपन्ना अह विसेसो॥ ५५ ॥ अविश्व जाणे मरणनया परिस्समजयाल ते विवजे । ते गुणदयापरिणया मुस्कामिसी परिहरंति ॥ ५५॥ अविसिमि वि जोगमि बाहिरे होइ विदुरया इहरा। सिधस्स उ संपत्ती अफ्ला जं देसिश्रा समए ॥५६॥ कमि वि पाणिवहमि देसि सुमहंतरं समए । एमेव णिकरफला परिणामवसा बहुविहीश्रा ॥ ५७॥ जे जत्तिश्रा य हेऊ जवस्स ते चत्र तत्तिा मुरके । गणणाईया खोगा एहवि पुन्ना जवे तुझा ॥ ५० ॥ इरिश्रावहिवाईवा जे चेव हवंति कम्मबंधाय । अजयाणं । ते चेव उ जयाण शिवाणगमणाय ॥ एए॥ एगंतेण णिसेहो जोगे स ए देसि विही वा वि । दखिरं पप्प हिसहो हुब विही वा जहा रोगे ॥६॥ जंमि जिसेविळते अश्वारो दुङ कस्सइ कया वि । तेणेव य तस्स पुणो कया सोही दविजाहि॥१॥अणुमित्तो वि न कस्सइ बंधो परवत्युपञ्चट नपि । तह वि खलु जयंति जई परिणामविसोपाहिमिचंता ॥ ६॥ जो पुष हिंसाययणाइएसु वह तणुपरीणामो। पुछो य त सिंग होड विसुधस्स जोगस्स ॥ ६३ ।। Jain Education intonal For Personal & Private Use Only Bihelibrary.org
SR No.600196
Book TitleSyadwad bhasha Devdharmpariksha Adhyatmopnishad Adhyatmikmatpariksha Yatilakshansamucchay
Original Sutra AuthorManvijayji, Yashovijay Upadhyay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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