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________________ ॥अथ यतिखक्षणसमुच्चयप्रकरणम् ॥ सिञ्चत्थरायपुत्तं तित्थयरं पणमिऊण जत्तिए । सुत्तोश्मणीइए सम्म जश्खरकणं वुवम् ॥१॥ उस्सग्गववायाणं जयपाजुत्तो जई सुए जणि । बिति श्र पुवायरिश्रा सत्तविहं वकणं तस्स ॥२॥ मग्गाणुसारिकिरिया पन्नवणिकत्तमुत्तमा सका। किरिबासु अप्पमा श्रारंजो सकणुकाणे ॥ ३ ॥ गरुड गुणाणुरा गुरुत्राणाराहणं तहा परमं । अरक य चरणधणाणं सत्तविहं खरकणं एयं ॥४॥ सुत्तायरणाणुगया सयला मग्गणुसारिणी किरिया । सुझाखंबणपुन्ना जं जणि धम्मरयाणंमि ॥५॥ मग्गो आगमणीई अहवा संविग्गबहुजणान्नं । उन्नयाणुसारिणी जा सा मग्गणुसारिणी किरिया ॥६॥ अन्नद जाणिवे पि सुए किंची कालाइ कारणाविरकं । श्राश्नमनहञ्चिय दीसा संविग्गगीएहिं ॥ ७॥ कप्पाणं. पावरणं श्रगोशरच्चाउँ जोखिानिस्का । नवग्गहिकमाहय तुंबयमुहदाणदोराई ॥ ॥ सिक्किगनिरिकवणा पक्रासवणार तिहिपरावत्तो। जोश्रणविहिअन्नत्तं एमाई विविहमन्नं पि॥ए॥ जं सबहा न सुत्ते पमिसिझं नव जीववहहेज। तं सबंपि पमाणं चारित्तधणाण जणिभं च ॥१०॥ श्रवखंबितण कर्कजं किंचि समायरति गीयत्या । श्रोवावराडबद्दगुणं सबेसिं तं पमाणं तु ॥ ११॥ जं पुष पमायरूवं गुरुवाघवचिंतविरहियं सवहं। सुहसीलसढाइन्नं चरिसिणो तं न सेवंति ॥ १२॥ जह सडेसु ममत्तं राढाइ असुमुवहिजत्ताइ । निद्दिजावसहि तूसी मसूरगाईण परिजोगो ॥१३॥ चाई असमंजसमलेगहा खुद्दचिनिनं खोए । बदुएहिवि आयरिश्रं न पमाणं सुधचरणाणं ॥ १५ ॥ सारसित परिणामो न पियाणदोराई । संविगगीय ॥१०॥ Jain Educat For Personal & Private Use Only lelibrary.org
SR No.600196
Book TitleSyadwad bhasha Devdharmpariksha Adhyatmopnishad Adhyatmikmatpariksha Yatilakshansamucchay
Original Sutra AuthorManvijayji, Yashovijay Upadhyay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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