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________________ ॥१० ॥ यशोधर दपरिश्रमत्वमाप्तः । निपपात महीतले नृपः । परशुबिन श्वोन्नतस्तरुः ॥ २६ ॥ अनुलवसि- चरित इमिदं गुरुवचनं । मनसााकुलेन परित्नावयतः ॥ न ममौ हृदि तस्य शोकांकु-रथ चेतनया वियुजे नृपतिः ॥ २७ ॥ स विसंस्थुलमौलिबंधनो । लुलितनांतविलोललोचनः ॥ दहशे परिपार्श्ववर्तिन्नि-निबिमोरस्थलताडनोत्तरं ॥ २० ॥ - उदकदमुकं वायु युबतासनमासनं । नजतत्रं उत्रं हहाहहातप प्रातपः ॥ इति स. | रत्नसं नीतभ्राम्यजनाननसंलव-स्तदनु तुमुलालोकः कोलाहलः सुमहाननूत् ॥ ॥ स| मजनि जिनदत्तो मिनविभ्रांतचित्तः । कथमपि हि न कालं कालदंडः प्रपेदे ॥ अथ किमिद. मनूनां येन पत्युर्मुनीना-मपि नवजलबिंदुस्यंदिनी नेत्रपत्रे ॥ ३० ॥ शीतैर्जलेः पटुकिनीपटुनिर्विमुक्तैः । सांईलाईवसनोपहृतैः समीरैः । प्रत्याजगाम स पुनः शिशिरोपचारैः ।। स्वस्श्रीकृतः सपदि मालवनूमिपालः ।। ३१ ॥ स प्रत्यासहचैतन्यो । उस्सहं सुखमुहह-॥१॥ न ॥ श्येष खंशश्वित्वा । शरीरं कर्तुमग्निसात् ॥ ३५ ॥ न पश्यतिस्म स मुनिं । नाईदE न चेतरान् ॥ रोषरूकदृशाऽपश्य-न्मेदिनीमेव केवलं ॥ ३३ ॥ पातकस्य परिवदं । न 6. GEEEEEEEEEEEEEEEA 66.EE EE GREEEEEEEEEEEEE FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE Jan Education International For Personat & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600192
Book TitleYashodhar Charitra
Original Sutra AuthorManikyasuri
Author
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1910
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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