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________________ पाइअविन्नाणकहा विसल्लाए कहा-६४ ॥३४॥ खज्जतीए वि तर्हि, बालाए सो हु अयगरो पावो । नो मारिओ किवाए, मंतं जाणंतियाए वि ॥ एवं तीए सब्बो उवसग्गो समयाए सोढो । एवं सरूवं पासित्ता वेरग्गवासिओ बावीससहस्सपुत्तेहिं सह चक्कवट्टी परिवइओ। सा दयाइ अयगररक्खणेण सुहज्झाणप्पहावेण य देवलोगं गया । पुणव्वसू तब्विरहेण दुमसेणमुणिपासे सणियाणं संजम पालिऊण देवलोगे उप्पण्णो, तओ चइत्ता लेक्खणो वासुदेवो जाओ। सा बाला देवलोगाओ चइऊण इह कोउगमंगलपरे दोणमेहनरिंदपुत्ती विसल्ला जाया, गब्भे आगया समाणा तीए पहावेण माया वि रोगमुत्ता जाया, जायाए तीए सिणाणजलेन नयर पि रोगरहियं जायं जओ जेणं चिय अण्णभवे, तवच्चरणं अज्जियं सउवस्सग्गं । तेण इमा विसल्ला, बहुरोगपणासिणी जाया ॥ उवएसो रायपुत्तिविसल्लाए, तवफलनिवेयग । दिळंतं सोहणं णच्चा, तवम्मि उज्जम कुण ॥ ६४॥ तवस्साए पहावम्मि विसल्लाए रायकण्णाए चउसटिइमी कहा समत्ता ॥ ६४॥ -सिरिपउमचरियाओ ॥३४॥ १ लक्ष्मणः। Jain Education For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600189
Book TitlePaia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherVijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages232
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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