SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुगस्स पाइअविनाणकहाण ॥१०॥ कहा-९१ वेसाए घरम्मि भोगाय समागच्छिरे, ताणं संखागणणटुं कक्करा मए एयम्मि भायणम्मि खिविया संति । तीए भाया वएइ-तुमं तु इमीए ईसं विहेमाणी निंदं वयंती एवं कासी । तेण तुमए वेसापावं गहियं, अओ भायणम्मि पक्खित्ता कक्करा वि पावुदएण कीडगा संजाया। पाविणो पावगणणा न कीरइ । जइ परस्स पावगणणा किज्जइ, तइया तस्स पावं लागइ । वुत्तं चअतिही चाऽववाई य, दो एए मम बंधवा । अववाई हरे पावं, अतिही सग्गसंकमो ॥ जं तुमए तीए वेसाए ईसा कया, अओ कक्करा कीडा संजाया । तओ सा तावसी तं गेहं चइऊणं अन्नहिं वासाय गया । एवं पराववायवज्जणेण सा सुहिणी जाया । परावेवायतल्लिच्छ-तावसी-फलियं जहा । नच्चा सो न विहेयव्वो, अप्पणो हियमिच्छुणा ॥ पराववायगहणम्मि तावसीए नउइयमी–कहा समत्ता । ९० -पबंधपंचसईए 'सढं पइ सढत्तणं समायरेज्ज' इह सुगस्स एगणउइयमी कहा-।। ९१॥ सढोवरिं सढं कुज्जा, सुहत्थिणो सया जइ । वेसा-मुगाण दिलुतो, इह बुद्धिपदायगो ॥११॥ कम्मि वि नयरम्मि एगो सेट्ठी निच्चं सुपत्तदाणं देइ । भूवस्स पुरओ वेसा नच्चं विहेइ । सा भूवाओ लोगेहिंतो य १-परापवाद-परनिन्दा । 01॥१०॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.janesbrary.org
SR No.600189
Book TitlePaia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherVijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages232
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy