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________________ हिंगुल. बाजुथी निंदापात्र अयो, अहीं तेम श्रवामां हेतुभूत मायाज हती; माटे हे उत्तम गुणोना जंडारसरखा प्रकरणं. लव्य माणस! तुं मायाथी ( कपटथी ) विरक्त था ? केमके, माया ले ते संसार- मूल जे; एम कट्याणकारी श्री जिनेश्वर प्रनुए कहेलुं . ॥४॥ ॥ ॥ (इति मायाप्रक्रमः) (अथ लोभप्रक्रमः) स्थले चरेच्च बोहित्य, शिलायामुदयेत्कजम् । लनेत्कं मृगतष्णात-स्तदा हि लोजतः सुखम् ॥ १॥ IN अर्थ- जो स्थलपर वहाण चाले, पत्थरपर कमल उगे, तथा फांऊवाना पाणीमांथी जो पाणी मले, ला तो लोजश्री सुख मले. ॥१॥ सोऽनिष्टोऽथवा लोजो, योलोजस्त्वनिष्टकः । दशेच्च मर्दितः सों, लोजो दशति सर्वदा ॥२॥ MI अर्थ- सर्प सुखदाइ के लोन मुःखदाई (एम जो सवाल पुउवामां आवे तो) तेउ बन्नेमांथी लोन || all मुःखदाइ ; केमके, सर्पने तो जो मईन करवामां आवे तोज मंखे , पण खोजतो हमेशां मंखे . ॥२॥|||| ॥७॥ Jan Educatio n For Personal and Private Use Only S inelibrary.org
SR No.600178
Book TitleHingul Prakaran
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages56
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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