________________
बघु० अंतिमखंडाइ नसुजियं च धणुं ॥ बादं पयरं च घणं, गणियवममेदि करणेदिं प्रकरण.
रन॥ विस्कंनवग्गददगुण,मूलं वहस्स परिर होई॥ विकंलपाय गुणि, ॥४६॥
परिर तस्स गणीयपयं ॥१नए॥ उगाहु जसूसु च्चिय, जगणीसगुणो जसूक लाला दोई॥ विनसुपिटुत्ते चनगुण, इसुगुणिए मूलमिद जीवा ॥ १०॥ नसुव । गि गुणजीवा, वग्गजुए मूल दोइ धणुपिठं ॥ धणुउगविसेससेसं, दलियं । बादागं होई॥२॥ अंतिमखंडस्सुसुणा,जीवं संगुणि य चनदि नश्कणं॥ लमि वग्गिए दस,गुणंमि मूलं दवइ पयरो॥१॥ जीवा वग्गेण उगे, मि लिए दलिए य होइ जं मूलं ॥ वेयहाईण तयं, सपिहत्तगुणं दवा पयरो॥ रए३॥ एयं च पयरगुणियं, संववदारेण देसियं तेण ॥ किंचूणं दोइ फलं,अब इदंपि दवर सुहुमगणणा ॥ २०४॥पयरो सोस्सेदगुणो, होइ घणोपरिरया
समा ॥४६॥ सवं वा ॥ करणगणणालसेहिं, जंतगलहियान दवं ॥ २५॥ इति श्री लघु
All Jain Educational International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org