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सुरत रत्तवई ॥१६४॥ अविवकिऊण जगई, सवेश्वणमुदचनक्क पिडुलत्तं॥गु तीससय डवीसा,न इंति गिरिच्यंति एगकला ॥१६५॥ पणती ससदस चउस य, बहुत्तरा सयल विजय विकंजो ॥ वणमुद डुग विस्रकंजो, प्रमवमसया य च प्राला ॥ १६६ ॥ सगसय पन्नासा नइ, पिहुत्ति चडवण सदस मेरुवणे ॥ गिरि विवर चसदसा, सवसमासो दवइ लकं ॥ १६७ ॥ जोयण सयदसगंते, सम धरणी हो हो गामा ॥ बायाली ससदसेहिं, गंतुं मेरुस्स पश्चिमर्ज ॥ १६८ ॥ चड चन्तीसं च जिएगा, जहममुक्कोसर्ज य हुंति कमा ॥ दरिचक्किबला चउरो, | तीसं पत्तेयमिह दीवे ॥१६॥ ससिङग रविडुंग चारो, इढ दीवे तेसिं चार खि तं तु ॥ पणसय दसुत्तराई, इगसविनागा य मयाला ॥ १७० ॥ पनरस चुल सीइसयं, बप्पन्न डयाल नागमाणाई ॥ ससिसूरमंडलाई, तयंतराणि गिगढ़ीणा इं ॥ १७२ ॥ पणतीस जोयणे जा, ग तीस चडरो य जाग सगनाया ॥ अंतरमा
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