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________________ Jain Educationa | यजिनियादि वयरतले ॥ नियगे निवायकुंके, मुत्तावलि समप्पवादेण ॥५०॥ दद | दार विचरा, विचरपमास जागजढाई ॥ जट्टत्तार्ज चनगुण, दीदा सवजिनी जं ॥ ५१ ॥ कुंमंतो अडजोयण, पिठुलो जलनवरि कोसङगमुच्चो ॥ वेइजु नइ देवी, दीवो दहदे विसमजवणो ॥ ५२ ॥ जोयस ठिपिटुत्ता, सवाय प्पिदुल | वेइतिडवारा ॥ एए दसुं कुंमा, एवं अन्ने वि नवरं ते ॥ ५३ ॥ एसिं विचारतिगं, | पडुच्च सम गुण चनुगुणगुणा ॥ चनसहि सोल चन दो, कुंमा सधेवि इद नवई ॥ ५४ ॥ एयं च नश्चनकं, कुंडा बहिवार परिवृढं ॥ सगसदस नइसमे यं, वेय गिरिप्प जिंदेई ॥५५॥ तत्तो बाहिर खित्त, ६ मद्यर्ज वलइ पुत्रप्रवरमु दं ॥ नइसत्तसदससदियं, जगइतलेणं उददिमेइ ॥ ५६ ॥ धुरि कुंडवारसमा, पते दसगुणा य पिदुलत्ते ॥ संघच महनई, विचरपासनागुंडा ॥ ५७ ॥ प ए खित्तमहनई, सदार दिसि दहविसु - गिरि - || गंतू सजिनीहिं, निय For Personal and Private Use Only jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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