SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण लघुले पाएए पंच वि दीवा, गेगनामा मुणेयवा ॥णा पढमे लवणो बीये, कालोददि से , ॥३५ सएसु सवेसु ॥ दीवसम नामया जा, सयंजुरमणो दहीचरमो ॥१०॥ बीउ त। चरमो, उदगरसा पढमचनथ पंचमगा ॥ छोवि सनामरसा, इस्कुरसामेस जलनिदिणो॥१२॥ जंबूद्दीवपमाणं, गुलकोयणलरकवट्ट विकंनो ॥ लवणाई या सेसा, वलयाना उगुणगुणा य ॥१॥ वयरामईदि निय निय, दीवोददि मजिगणियमूलाहिं, अहुचाहिं बारस, चनमूले नवरि रुंदादिं ॥१३॥ विबार। ग विसेसो, उस्सेहि विनत्तु खन चउँ हो ॥श्य चूलागिरि कूमा, तुल्ल विd कंन करणादिं ॥१४॥ गान गुच्चाइ तय, नाग रुंदाइ पनमवेईए ॥ देसूण 5 जोयणवर, वणादि परिमंमिय सिराहिं ॥१५॥ वेईसमेण महया, घवरक क डएण संपरित्ताहिं॥ अहारसूणचनन्न, त्त परिदिदारं तरादिं च ॥१६॥ अहच्च ॥३५॥ चनसु विचर, उपाससक्कोस कुट्टदारादिं॥पुवाइ महडियदे, व दारविजयाइ ना, Jain Education For Personal and Private Use Only A mjainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy