________________ थान ||, ते वैरागी ऊपर रागिणी 2 // 15 // // एवं स्त्रीनु असारपणुं चिंतवतो थोडी || वर्ग 4 वेला तो समाधिवंत थको निला करे, पण बुद्धिवंत धर्मना पर्वने विषे मैथुन एटले ना ॥रणा / स्त्रीनो जोग न करे // 20 // // वली बुद्धिवंत होय ते घणी वेला पर्यंत निखानुं से - स्त्रियस्ताः कामयेत कः // सुधीस्तां कामयेन्मुक्तिं, या विरागिणि रागिणी // IN|| // 1 // एवं ध्यायन् नजेनिश, स्वल्पं कालं समाधिमान् // जेन्न मैथुनं / / धीमान, धर्मपर्वसु कर्दिचित् // 20 // नातिकालं निषेवेत, प्रमीलां जातु चित्सुना धीः // अत्युक्तिा नवेदेषा, धर्मार्थसुखनाशिनी // 1 // अत्याहारोऽल्पनि जश्व, अल्पारंपरिग्रहः॥ नवत्यल्पकषायी यो, झेयःसोऽल्पनवन्रमः // // वन न करे, केमके, घणी उघ करे तो धर्म, अर्थ श्रने सुख तेनो नाश करनारी थाय // 10 // // 1 // // जे खल्प आहार करे, खल्प निमा लीए, स्वल्प श्रारंन करे, जेने खट्प परिग्रह होय,अनेजेने क्रोध थोडोहोय, तेनुं संसारमा नमवू पण खट्पज जाणवू Jan Educatona For Personal and Povate Use Only l ainelibrary.org