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________________ अ०ज० २०६ ॥ Jain Educationa नज करवुं ॥५३॥ ॥ न्यायमार्गे शोजतो एवो पुरुष जो ए प्रकारें दिवसना चारे प्रहर पूरण करे, तो विनयें करीने डाह्यो ते पुरुष अक्षय मोक्षना सुखनो नजनार थाय ॥ ५४ ॥ इति श्राचारोपदेशे तृतीय वर्ग संपूर्ण ॥ ३ ॥ ॥ थोडे पाणी यें पग, हाथ | चनम् ॥ दानं वा विदितं रात्रौ, जोजनं तु विशेषतः ॥ ५३ ॥ एवं नयेद्यश्चतुरो ऽपि यामान्, नयाजिरामः पुरुषो दिनस्य ॥ नयेन युक्तो विनयेन ददो, नवे | दसावच्युतसौख्यनाग् वै ॥ ५४ ॥ इति आचारोपदेशे तृतीयवर्गः ॥ ३ ॥ ॥ अथ चतुर्थवर्गप्रारंभः ॥ प्राव्य स्वल्पनी रेण, पादौ दस्तौ तथा मुखम् ॥ धन्यंमन्यः पुनः सायं, पूजये। जिनं मुदा ॥ १ ॥ सक्रियासहितं ज्ञानं जायते | मोक्षसाधकम् ॥ जानन्निति पुनः सायं कुर्यादावश्यक क्रियाम् ॥ २ ॥ | तेमज मुखने पखालीने श्रात्माने धन्य मानतो वली श्रीजिनेश्वरनी हर्षेकरी पूजा ॥ जली क्रिया सहित जे ज्ञान ते मोनुं साधन थाय, एवं जाणतो य " करे ॥ १ ॥ For Personal and Private Use Only वर्ग ४ ॥ १०६ ॥ thanelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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