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________________ ण करे, ते पुरुषने धन्य , कारण के ते पुरुष, अर्धं आयुष्य अवश्य उपवासमां जा य, अर्थात् ते पुरुषर्नु एक वर्षमा अधुं वर्ष उपवासमां जाय ॥५०॥ ॥ जे मनुष्य दिवसें तथा रात्रिने विषे खातो थको रहे, ते मनुष्य प्रगटपणे सींगमा पूबडा रहित एवा पशु एटले ढोरसमान जाणवो ॥५१॥ ॥रात्रिनोजनना करवाथी ते मनु । रतिं धन्यो, यः सदा निशि भोजनात् ॥ सोई पुरुषायुषस्य, स्यादवश्यमुपोषि तः॥५०॥ वासरे च रजन्यां च, यः खादन्नवतिष्ठते॥श्रृंगपुवपरित्रष्टः, स स्पष्टं पशुरेव हि ॥५१॥ उलूककाकमार्जारगृध्रशंबरशूकराः ॥ अदिश्चिक गोधाश्च, जायंते रात्रिनोजनात् ॥५॥ नैवाढतिर्न च स्नानं, न श्राई देवता प्य घूश्रम, काक, बिलाड मांजार, गृध, सांबर, सूअर, सर्प, विलु अने गिरोलीना श्रव तार पामे ॥ ५॥ ॥राजे होम न करवो, स्नान न करवू, श्राफ न करवं, देवपूजा न करवी, दान पण रात्रे दीधुं निःफल थाय, माटे न करवं, अने विशेष जोजन तो Jain Education a l For Personal and Private Use Only Wainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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