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________________ हत्याना करनार, श्राचारना लोपनार, अथवा पोताना कुलनो त्याग करनार एटला नी पंक्तिमां जाणतो थको जमवा बेसे नही ॥ ५६ ॥ ॥ मदिरा, मांस, माखण, मधु, पांच जातिनां नंबरनां काडनां फल, अनंतकाय, सर्व जातिनां श्रजायां फल त था रात्रें जोजन ए सर्वदा वर्ज्य बे ॥ ५७ ॥ ॥ काचो गोरस ते बास दहिं इत्यादि शेत्सुधीः ॥ ५६ ॥ मद्यं मांसं नवनीतं, मधूडुंबरपञ्चकम् ॥ अज्ञातकायमज्ञा तफलं रात्रौ च जोजनम् ॥१॥ आमगोरससंयुक्तं द्विदलं पुष्पितौदनम् ॥ द ध्यदोद्वितयातीतं, कुथितान्नं च वर्जयेत् ॥५८॥ जन्तुमिश्रं फलं पुष्पं, पत्रं चा न्यदपि त्यजेत् ॥ संधानमपि संसक्ति, जिनधर्मपरायणः ॥ ५० ॥ 11 | तेणें करी सहित कठोल चीज, सडी गयेलुं अन्न, बे दिवस उपरांतनुं दहीं तथा को ही गयेलुं कुत्सित अन्न ए सर्व वर्जन करे ॥ ५८ ॥ ॥ श्रीजिन धर्मने विषे रक्त थयेलो श्रावक फल, फूल तथा पान अने बीजा पण जे पदार्थ जीवादिसहित दोय ते सर्व Jain Educationalenal For Personal and Private Use Only jainlibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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