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________________ ॥ नही॥ ५५॥ ॥ अग्निखुण, नैझतखुण अने दक्षिणदिशि था त्रणदिशा जोजनमा | वर्ण्य , तथा रविना अस्तवेलायें, उदय वेलायें, ग्रहण पर्व होय त्यारें अथवा आप ॥ Mणा झाति बांधवमां शब ज्यांसुधी पड्युं होय त्यांसुधी जमवू नही ॥५३॥ ॥ जे । बतेऽव्ये जोजनादिकने विषे कृपणपणुं करे, तेमूर्खबुद्धिवालो जाणवो.ते देवने काजें धन कातिः॥५॥ आग्नेयीं नैतिं नुक्तौ, ददिणां वर्जयेदिशम् ॥ सांध्ये ग्रहणका भले च, स्वजनादेः शवस्थितौ ॥५३॥ कार्पयं कुरुते यो दि, नोजनादौ धने स। ति ॥ मन्ये मन्दमतिस्सोत्र, देवाय धनमर्जति ॥५४॥ अज्ञातनाजने नाद्यान, जातिव्रष्टरदेऽपि च ॥ अज्ञातानि निषिधानि, फलान्यन्नानि संत्यजेत् ॥ बालस्त्रीभ्रूणगोहत्याकृतामाचारलोपिनाम् ॥ स्वगोत्रनेदिनां पंक्तौ, जानन्नोपवि IN कमावे ? ॥५॥ ॥श्रजाणी थाली प्रमुख नाजनमां जमवू नही, जे शाति थकीए भ्रष्ट थयो होय तेने घेर जमवू नही. अजाण्यां, नगवंतें निषेध्यां एवां फल तथा अन्न। बगडे, त्याग करे ॥ ५५ ॥ ॥ जे पंडित होय ते, १ बाल, २ स्त्री, ३ गर्न, ४ गो, एनी ॥ Jain Education alltional For Personal and Private Use Only aw.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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