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|| विधियें सहित आगल रहीने चैत्यवंदन करे ॥ ४५ ॥ ॥ एक नमुखुणेकरी प्रथम जघन्य चैत्यवंदन जाणवू, बे नमुहुणेकरी बीजुं मध्यम चैत्यवंदन जाणवं, पांच न । मुहुणेकरीत्रीजु उत्तम चैत्यवंदन जाणवू. बीजां पण त्रण प्रकारें चैत्यवंदन , ते कहे जे ॥४३॥ ॥ नमुहुणंनो पाठ योगमुजायें नणीजें, तथा जावंति चेश्थाई वन्दनम् ॥ ४२ ॥ एकशस्तु जघन्या स्याद्, घान्यां नवति मध्यमा॥ पञ्चन्नि |
स्तूत्तमा ज्ञेया, जायते सा त्रिधा पुनः ॥४३॥ स्तुतिपाठे योगमुश, जिनमुज धातु वन्दने ॥ मुक्ताशुक्तिकमुज तु, प्रणिधाने प्रयुज्यते ॥४४॥ उदरे कूर्परी |न्यस्य, कृत्वा कोशाकृती करौ ॥ अन्योन्याङ्गलिसंश्लेषाद्योगमुश नवेदियम
४५॥ पुरोंगुलानि चत्वारि, पश्चादूनानि तानि तु॥ अवस्थितिः पादयोर्या, जाए पाठ जिनमुखायें नणवो, तथा जयवीयरायनो पाठ मुक्ताशुक्ति मुखायें नणीयें॥४॥
पेटने विषे कुणी थापीने कमलना डोडाने श्राकारें बे हाथ करीने मांहोमांदे श्रां गली नेलियें ए प्रथम योगमुखा होय ॥ ४५ ॥ ॥ चार अंगुल आगली आंगलीनी
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