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________________ श्रा०ज० ॥ ए३ ॥ ॥ २५ ॥ ॥ पूर्वदिशि साहामो बेसी पूजा करे तो लक्ष्मी पामे, श्रनिखु संताप पामे, दक्षिण दिशियें मरण पामे, अने नैरुत्य खुणे उपद्रव उपजे ॥ २६ ॥ ॥ पश्चिम दिशियें पुत्रनुं दुःख होय, वायु खुणे संतान न होय, उत्तर दिशियें घणो लाज थाय, पूर्वस्यां लगते लक्ष्मी मग्नौ संतापसंजवः ॥ दक्षिणस्यां नवेन्मृत्युनैर्ऋते स्याङ | पवः ॥ २६ ॥ पश्चिमायां पुत्रःखं, वायव्यां स्यादसंततिः ॥ उत्तरस्यां महा लाज, ईशान्यां धानि नो वसेत् ॥ २७ ॥ अंध्रिजानुकरांसेषु, मस्तके च यथा क्रमम् ॥ विधेया प्रथमं पूजा, जिनेन्द्रस्य विवेकिनः ॥ २८ ॥ सचंदनं च काश्मी रं, विनार्चा न विरच्यते ॥ ललाटकंठहृदये, जठरे तिलकं पुनः ॥ २९ ॥ | ईशान खुणे घरने विषे न रहे ॥ २७ ॥ ॥ बेग, बेढीच, बे हाथ, बेखना अने एक मस्तक ए नवे अंगें अनुक्रमें डाबा पाश्वाथी विवेकी श्रावकें श्री जिनेंद्रनी प्रथम पूजा करवी ॥२८॥ ॥ जला चंदन ने सारा केशर विना पूजा न करवी, वली ल Jain Educationational For Personal and Private Use Only वर्ग २ ॥ ए३ ॥ jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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