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________________ नवत० ॥ ७ ॥ खइए नावे परिणा, मि ए पुण होइ जीवत्तं ॥ ४९ ॥ थोवा नपुंस सि -, यी नर सिद्धा कमेण संखगुणा ॥ इ मुख तत्तमेत्र्यं, नव तत्ता लेस मणि ॥ ५० ॥ जीवा नव पयचे, जो जाएगई तस्स होइ सम्मत्तं ॥ जावेण सद्दढंतो, प्रयाणमाणेवि सम्मत्तं ॥ ५१ ॥ सवाई जिणेसर जा, सिया इं वयणाई नन्नदा हुंति ॥ इह बुद्धी जस्स मणे, सम्मत्तं निञ्चलं तस्स ॥ ५२ ॥ तो मुहुत्त मित्तं, पि फासि जेहिं हुन सम्मत्तं ॥ तेसिं व डूपुग्गल, परिट्टो चेव संसारो ॥ ५३ ॥ नस्सप्पिणी प्रांता, पुग्गल परि |दृर्ज मुणेवो ॥ तेांताती प्रदा, प्रणाया प्रांत गुणा ॥ २४ ॥ जिए जिण तिच तिचा, गिहि अन्न सलिंग थी नर नपुंसा ॥ पत्ते सयंबु झा, | बुधबोहि कणिक्काय ॥ ५५ ॥ जिसिद्धा अरिहंता, अजिए सिन्धाय पुंमरि | या पमुदा ॥ गणहारि तिवसिया, प्रतिच्च सिधा य मरुदेवी ॥ ५६ ॥ गिदिलिं Jain Educationanal For Personal and Private Use Only प्रकरण. ॥ ५ ॥ jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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