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________________ नवत० ॥ ६॥ दिया, वचंति प्रयरामरं ठाणं ॥ ३३ ॥ इति संवरतत्वं ॥ सण मूणोयरिया, व त्तीसं खेवणं रसच्चार्ज ॥ काय किलेसो संली, प्रायवद्योतवो दोइ ॥ ३४॥ पाय चि तं विणर्ज, वेयावच्चं तदेव सद्या ॥ काणं नस्सग्गो वि, निंतर तवो होइ | ॥ ३५ ॥ बारस विदं तवो नि, ज्जराय बंधो चनविगप्पो ॥ पयई विअणु नाग, पएस एदि नायवो ॥ ३६ ॥ इति निर्जरातत्वम् ॥ पयइ सहावोबुत्ता, | विइ कालावदारणं ॥ अनागो रसो नेर्ज, परसो दलसंच ॥ ३७ ॥ पड | पडिदार सि मऊ, हडचित्तकुलाल जंगगारीणं ॥ जद ए एसिंजावा, कम्मा एवि जाण तद जावा ॥ ३८ ॥ इह नाण दंसणावर, एए वेय मोदान नाम गो आणी ॥ विग्धं च पण नव डु प्र, छवीस चन ति सय 5 पणविदं ॥ ३९५ ॥ नाणे य दंसणे य, वेणिए चेव अंतराईए ॥ तीसं कोडाकोडी, प्रयराणं वि | इय नक्कोसा ॥ ४० ॥ सत्तरि कोडाकोडी, मोहणिए वीस नाम गोएसु ॥ ति Jain Educationaal For Personal and Private Use Only प्रकरण. ॥ ६॥ ainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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