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हि मपमत्तो, बंधइ देवान अस्सइरोवि ॥ ठावन्न मपुवो, बप्पन्नं बावि वीसं ॥७४॥ बावीसा एगूणं, बंधइ अठारसंत निचट्ठी | सत्तर सुदुम स रागो, सायममोदो सजोगित्ती ||१५|| एसो बंध सामि, त उहु गइ आइए | सुवि तदेव ॥ उदा उसा दिइ, जब जहा पयमि सजावो ॥७६॥ तियर देव निरिच्या, उच्च तिसु तिसु गईसु बोधवं ॥ प्रवसेसा पयडीजे, हवंति सवासु | विगई || || पढम कसाय चनक्कं, दंसण तिग सत्तगा वि जवसंता ॥ प्रवि रय सम्मत्तार्ज, जाव नियठित्ति नायवा ॥७८॥ सत्तठ नवय पनरस, सोलस | प्रहारसे व इगुवीसा ॥ एगादि डु चडवीसा, पणवीसा बायरे जाण ॥ ७ ॥ सत्तावीसं सुदुमे, अठावीसं च मोहपयडी ॥ जवसंत वीरागे, नवसंता हुं ति नायवा ॥८०॥ पढम कसाय चक्कं इत्तो मित्त मीस सम्मत्तं ॥ विरय सम्मे देसे, पमत्ति पमत्ति खीयंति ॥२॥ अनि बायरेथी, गिन्धिति
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