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________________ कर्म ० ॥ ७५ ॥ सत्ताइ दसन मिचे, सासायण मीसए नवुकोसो ॥ बाई नव न पंचाई ठेव ॥४॥विरए खर्जवस मिए, चडराई सत्त बच्च पुत्रं ॥ यरे पुण, इक्कोवडवेव उदयंसा ॥५०॥ एगं सुदुम सरागो, वेइ वे सेसा ॥ जंगाणं च पमाणं, पुबुद्दिठे नाय ॥ ५२ ॥ इक्कग बमिक्कियारि, का | रसइक्कारसेव नव तिन्नि ॥ एए चडवीस गया, बारडुगं पंच इक्कंमि ॥ ५२ ॥ बा | रस पास ठसया, उदय विगप्पेदिं मोहिया जीवा ॥ चुलसीई सत्तत्तरि, पय | विंद सपदि विन्नेा ॥ ५३ ॥ ग चन च चनर, ठगाय चनरो हुंति च नवीसा || मिचाइ पुवंता, बारस पणगंच निट्टी ॥५४॥ अट्ठी बत्तीसं, बत्तीसं सठि मेव बावन्ना ॥ चोयाल दोसुवीसा, मिच्छामासु सामन्नं ॥५॥ जो गोवरंग लेसा, इएदिं गुणिया दवंति कायद्वा ॥ जे जब गुणठाणे, दवंति ते तब गुणकारा ॥ ५६ ॥ तिन्नेगे एगेगं, तिगमी से पंच चउसु तिग पुढे ॥ इक्कार Jain Education national विरई, देसे नियट्टि बा वेगान For Personal and Private Use Only ग्रंथ ६ 114 11 w.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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