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________________ कर्म० ॥ ७४ ॥ दा संभवं विभजे ॥ ३२ ॥ नव पणगोदय संता, तेवी से परमवीस बीसे ॥ ठ चउरहवीसे, नव सत्ति गुण तीस तीसंमि ॥३३॥ एगेगमेगती से, एगे एगुदय संतंमि ॥ नवरय बंधो दस दस, वेयग संतंमि गाणि ॥३४॥ तिविगप्प पगइ ठाणे, दिं जीव गुणसन्निएस ठाणेसु ॥ जंगाप जिया, जब जहा संत्र वो जवइ ||३५|| तेरस सुजीव संखे, वरसु नाणंतराय तिविगप्पो ॥ इक्कमिति 5 विगप्पो, करणं पड़ च विगप्पो ॥ ३६ ॥ तेरे नव चन पणगं, नव सत्ते ग |म्मि जंग मिक्कारा ॥ वेच्य प्रियान गोए, विजयमोदं परं वुद्धं ॥ ३७ ॥ पत्त ग सन्निप्ररे, अठ चनक्कं च वेयलिय गंगा ॥ सत्तय तिगं च गोए, पत्ते जीव गणेसु ॥ ३८ ॥ पत्ता पतत्तग, समणा पत्त प्रमण सेसेसु ॥ ठावीसं दस गं, नवगं पणगं च आस्स ॥ ३ ॥ सु पंचसु एगे, एग डुगं दसय मोह | बंध गए । तिग चन नव उदय गए, तिग तिग पन्नरस संतंमि ॥४०॥ पण डु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ग्रंथ ६ ॥ ७४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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