SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथ६ कर्म नाण॥देविंदसूरि लिहिअं,सयगमिणं आय सरणछा ॥ १० ॥ इति शतकना ॥ २॥ मा पंचमः कर्मग्रंथः समाप्तः॥श्रीरस्तु॥ ॥ ॥ ॥ ॥५॥ ॥अथ श्री सप्ततिकानामा षष्ठः कर्मग्रंथः प्रारभ्यते॥ सिपएहिं महवं, बंधोद Nय संत पयमि गणाणं ।। वुवं सुण संखेवं, नीसंदं दिहि वायरस ॥२॥ कइ बंधं । तो वेअइ, कश कश् वासंत पयडि गणाणि ॥ मूवुत्तर पगईसु, नंग विगप्पा मु| णेवा ॥॥ अह विद सत्त बब्बं, धएमु अ च उदय संतंसा॥ एग विदेति विगप्पा, एग विगप्पा अबंधंमि ॥३॥ सत्तठ बंध अछुद,यसंत तेरस सुजीव ग Nणेसु॥ एगंमि पंच नंगा, दो नंगा हुँति केवलिणो॥४॥ असु एग विगप्पो, लस्सु विगुण सन्निएसु उ विगप्पा॥ पत्तेयं पत्तेयं, बंधोदय संत कम्माणं ॥mal |पंच नव उमि अहा, वीसा चनरो तदेव बायाला ॥ऽस्मिय पंच य नणिया, प ॥७॥ यडी आणुपुबीए॥६॥बंधोदय संतंसा, नाणावरणं तराइए पंच ॥बंधो चरमे । Jain Educational Ilonal For Personal and Private Use Only B hujainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy