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लघुले०
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लकु दीदवासा, वासविजयविबरो नमो ॥ २३४ ॥ खित्तंकगुणधुवंके, | प्रकरण. दोसय बारुत्तरेदि पविनत्ते ॥ सबब वासवासो, हवेश् इद पुण श्य धुवंका ॥३५॥ धुरि चनद लक सद, स दो सगनग्या धुवं तहा म॥ उसय अ डुत्तर सतस,हि सदसब्बीसलका य ॥२३६॥गुणवीस सयं बत्ती,स सहस गुणयाल लक धुवमते ॥ नगिरिवणमाण विसु, ६ खित्तसोलंसपिङ विजया । ॥३॥ नवसदसा बसय तिह, त्तरा य बच्चेव सोलनाया य ॥ विजयपिहुत्त नगिरि, वणविजयसमासचनलका ॥२३॥ पुवंव पुरी य तरू, परमुत्तरकुरु सुधाइ मदधाइ॥रुका तेसु सुदंसण, पियदंसणनामया देवा ॥२३॥ धुव । ||रासीसु य मिलिया, एगो लरको य अमसयरि सहसा॥ असया बायाला, परिदितिगंधायईसंडे ॥२४०॥ कालोददि सबबवि, सदसुंडो वेलविरदिन त
॥४ ॥ ॥सुबियसम कालमदा, कालसुरा पुवपछिम ॥२४१॥ लवणंमिव जदसं
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