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कार्यने विषे वपराय . ॥१॥
. ॥ ढाल १२ मी.॥ (श्रा लाल.-ए देशी.)
वचन सणी तेणीवार हरख्यो अन्नयकमार ॥ सोनागी लाल ॥धन्य धन्य एश श्राविका जी ॥ जीवाजीवादिक जाग, शिर वहे. श्री जिन आण ॥ सो ॥ जिनमतना है। एशोनाविका जी॥१॥ एह तो नत्तम पात्र, एहनो निर्मल गात्र । सो०॥ यात्रा अमुज1 ने नली जी। एहनोन्नक्ति नदार, कीजे विविध प्रकार ॥ सो०॥सारपणाय। वलं| वल।
जी॥२॥श्म आलोची चित्त, बोल्यो अन्नय पवित्र ॥ सो॥ अम घर तुमे पावन क-2 रोजी ॥ तव बोली ततखेव, धर्मबांधव तुम देव ॥ सो०॥ वचन अमारूं चित्त धरो जी॥ ३॥आज ने तीर्थोपवास, सवि साहमिणीने खास ॥ सो ॥नोजन हर किम कीजीएल
जी ॥ सुणि चमक्यो चित्तमांदि, वचन अनोपम त्यांहि ॥ सो० ॥ लान प्रत्यूषे लीजिये ॥जी॥४॥बीजे दिन सुप्रकार, नक्ति करे मनुहार ॥सो| अन्नयकुमर नोजन तणी जी
॥ तव ते कपटी वेश, अन्नय थकी सुविशेष ॥ सो० ॥ प्रीति करे वचने घणी जी॥५॥ ॐ यतः ॥ अनुष्टुब्वृत्तम्. ॥ सुप्रयुक्तस्य दंनस्य, ब्रह्माप्यं तं न गवति ॥ कोलिको विश्नु रूपे
श, राजकन्यां निषेवते ॥१॥नावार्थः-सारी रीते करेला कपटना पारने ब्रह्मा पग जाल
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